उत्तरकाशी के स्कूली छात्र- छात्राओं ने पेड़ों पर बांधी राखी

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राखी

देश दुनिया भर में रक्षाबंधन पर्व की धूम है। भाई-बहनों के इस पवित्र त्योहार पर बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा, लेकिन पहाड़ों में प्रकृति की रक्षा के लिये स्कूली छात्र- छात्राओं ने पेड़ों पर भी राखी बांधी है।

पेड़ पौधे और प्राणियों का जन्म- जन्म का रिश्ता है। इसी रिश्ते की डोर इतनी मजबूत है कि मनुष्य सांस ले सकता है। पानी पी सकता है। महिलाएं जंगल से चारा और लकड़ी ला सकती है। बारिश हो सकती है। जलवायु नियंत्रित की जा सकती है और बाढ़ और भूस्खलन को पेड़ पौधे रोक सकते हैं।

इसी संदेश को उत्तरकाशी जिले के आदर्श राजकीय इंटर कॉलेज गेंवला, आदर्श उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज पुरोला, राजकीय इंटर कॉलेज सौंरा आदि के विद्यार्थियों ने पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे हैं। यहां के प्रधानाचार्य , शिक्षक अनिल बेसरी प्रयागनाथ आदि अनेक उत्साही शिक्षकों के माध्यम से यह काम एक प्रेरणा के रूप में चलाया गया। पेड़ पौधों के प्रति जितना पुस्तकों में पढ़ाया जाता है। यदि प्रैक्टिकल रूप में पेड़ पौधों के साथ रिश्तेदारी बना के रखना बहुत जरूरी है। इसके लिए रक्षाबंधन के अवसर पर पेड़ों को बचाने की मुहिम वर्षों से आगे बढ़ रही है। स्कूल के विद्यार्थी पौधरोपण करते हैं। बहुत उत्साह के साथ राखी बांधकर दिल में एहसास और अनुभव कर सकते हैं कि जंगल उन्हें हर रोज जो जीवन दे रहा है। उसे बचा के रखना बहुत आवश्यक है।

रक्षासूत्र आंदोलन से बना महिलाओं का पेड़ों से भाइयों जैसा रिश्ता

रक्षासूत्र आंदोलन के कारण महिलाओं का पेड़ों से भाइयों का जैसा रिश्ता बना है और जिस तरह चिपको आंदोलन की महिला नेत्री गौरा देवी ने जंगल को अपना मायका कहा है। उसको रक्षासूत्र आंदोलन ने मूर्त रूप दिया है। प्रभावी रूप से वनों पर जनता के पारंपरिक अधिकारों की रक्षा का बीड़ा उठाया है। इस आंदोलन के कारण उपरोक्त वन क्षेत्रों में वन निगम द्वारा किए जा रहे हरे पेड़ों की कटाई को सफलतापूर्वक रोक दिया गया है। यहां तक कि टिहरी और उत्तरकाशी में लगभग 121 वन कर्मियों को इसके लिए दोषी ठहराया गया था, लेकिन रक्षासूत्र की मुख्य मांग है कि वनों के नजदीक रहने वाले गांव के द्वारा ही सरंक्षण, विकास तथा नियोजन का कार्य किया जाना चाहिए। हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान मातली उत्तरकाशी ने रक्षासूत्र आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए ग्राम वन के विकास -प्रसार पर भी ध्यान दिया।

गांव-गांव में महिला संगठनों ने अग्नि नियंत्रण के लिए भी स्थान- स्थान पर रक्षासूत्र आंदोलन चल रहा है। इस कार्य में उत्तराखंड की अनेक क्रांतिकारी महिलाएं आगे आयीं, जिसमें मंदोदरी देवी, जेठी देवी ,सुशीला पैन्यूली ,सुमति नौटियाल ,बसंती नेगी ,मीना नौटियाल , कुंवारी कलूड़ा, गंगा देवी चौहान,हिमला, विमला ,उमा देवी अनीता देवी आदि ने इसमें नेतृत्व का काम किया। रक्षासूत्र आंदोलन हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को वन बचाओ दिवस के रूप में मनाता है।

वनों को काटो और बेंचो के कारण ही हुआ चिपको आन्दोलन –

वन निगम की वनों को काटो और बेंचो के कारण ही लोगों ने चिपको के बाद पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधे गए जो इतने तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि जल, जंगल, जमीन की एकीकृत समझ बनाने के प्रति लोगों को जागरूक करता आ रहा है। स्कूल- कॉलेजों के बच्चे पौधरोपण के दौरान पेड़ों पर राखी बांधते हैं। रक्षाबंधन के पर्व पर भी भाई-बहन के अलावा पेड़ों पर भी रक्षा सूत्र बांधते हैं ताकि वह समय-समय पर घास, लकड़ी, पानी की आपूर्ति करें और उसके बदले समाज उनकी रक्षा के लिए तत्पर रहें। इस भावना के साथ रक्षासूत्र चलता है। वनों की व्यावसायिक कटाई के खिलाफ रक्षा सूत्र आंदोलन लगातार जारी है।