देहरादून,उत्तराखंड सरकार ने हैस्को के सहयोग से बनने वाले खास किस्म के प्रसाद के माध्यम से सूबे के काश्तकारों और स्वयं सहायता समूहों से जुड़े लोगों के जीवन में क्रांतिकारी आर्थिक बदलाव लाने का प्रयास शुरू किया है। इसमें मुख्य मेहनत किसानों और स्वयं सहायता समूहों की होगी। उन्हें तकनीकी जानकारी हैस्को और आर्थिक सहयोग सरकार देगी। प्रसाद निर्माण कार्यक्रम में लगने वाले लोगों को प्रशिक्षित करने का जिम्मा भी सरकार का होगा।
पिछले साल उत्तराखंड के किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को लेकर यह पहल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कृषि मंत्रित्व कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था जिसे अब अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इस प्रसाद में रिंगाल की टोकरी, पत्थर की मूर्ति, चौलाई, कुट्टू, मंडुवा, झंगोरा आदि पर्वतीय उत्पादों का प्रयोग होगा, इन्हें शुद्ध देसी घी में प्रसाद के रूप में तैयार किया जाएगा।
इसके बारे में और बात करते हुए हेस्को की साइंटिस्ट डॉ. किरन नेगी ने बताया, “राज्य के लगभग सभी मंदिरों के आसापास होने वाली फसल से हम मंदिर का प्रसाद बनाने की तैयारी कर रहे हैं। बद्रीनाथ के पास ज्यादा होने वाली फसल व क्षेत्रीय लोगों की मदद से हम बद्रीनाथ के लिए प्रसाद बनाऐंगे। ठीक ऐसे ही केदारनाथ के पास होने वाली क्षेत्रीय फसल और लोगों के साथ मिलकर प्रसाद तैयार किया जाएगा। इसमें चौलाई, कुट्टू,मक्का,गेहूं आदि की मदद से प्रसाद तैयार किया जाएगा। यह केवल चारधाम मंदिरों तक सीमित नहीं रहेगा हरिद्वार के मंसा देवी मंदिर और रामनगर के गर्जिया मंदिर में भी हम क्षेत्रीय लोगों की मदद से प्रसाद बनाने की तैयारी कर रहे हैं। डॉ नेगी ने कहा कि, “आने वाले समय में लोकल लोगों की मदद से बनने वाला यह प्रसाद उत्तराखंड का ट्रेडमार्क बनकर दूर-दराज से आने वाली श्रद्धालुओं के बीच मशहूर होगा।”
लोकल स्तर पर तैयार होने वाली यह फसल लगभग तीन महीने तक खराब नहीं होगी। इसके अलावा जिस तरह से मंदिर में पहले भी 21 रुपये से प्रसाद खरीदा जा सकता था वैसे ही क्षेत्रीय फसल का प्रसाद भी 21 रुपये से शुरु होगा और मात्रा के हिसाब से पैसे बढ़ते जाऐंगे। इस वक्त बद्रीनाथ 4 महिलाओं का सेल्फ हेल्प ग्रुप इस काम में लगा हुआ है और केदारनाथ में पिछले साल से शुरु हुए लोकल प्रशाद के काम में 40 से भी ज्यादा सेल्फ हेल्प ग्रुप काम कर रहे हैं।
स्थानीय स्तर पर रोजगार को बढ़ावा और युवाओं/महिलाओं के रोजगार की तलाश में पलायन रोकने के लिए गांव में स्वयं सहायता समूह भी बनाये है। इन सभी समूहों को प्रसाद तैयार करने में टेक्नीकल ट्रेनिंग उत्तराखंड पयर्टन विकास परिषद् के माध्यम से आईडीएस द्वारा दिया जा रहा है। उत्तराखंड के सभी धार्मिक पर्यटक स्थलों में बाजार से बनीं ईलायची दाना प्रसाद के रूप में बांटी जाती थी, जबकि पहाड़ी जैविक फसल के उत्पादों से बनें प्रसाद के चढ़ावे के रूप में बहुत सम्भावनायें है। साथ ही प्रसाद की पैकेजिंग के लिए पॉलिथीन की जगह पर्यावरण फ्रेंडली सामग्री जैसे जूट के बैग भी बनाए जाऐंगे।