पौड़ी, बिच्छू घास का नाम आते ही लोगो में डर पैदा हो जाता है क्योंकि इस घास के शरीर पर लग जाने भयानन खुजली होती है। जहां बिच्छू घास उर्फ कंडाली का इतना खौफ है तो वहीं इसके अनेक फायदे भी हैं। बिच्छू घास में इतने विटामिन्स पाए जाते हैं कि यह अपने आप में एक औषधि है।
उत्तराखंड की पहाड़ी भाषा में सियूंण, कंडाली कहे जाना वाला बिच्छू घास, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। बिच्छू घास को जहां कुमाऊं मंडल में सियूंण के नाम से जाना जाता है, वहीं गढ़वाल में इसे कंडाली कहते हैं। इस पौधे पर हाथ लगते ही एक करंट सा लगता है, जैसे बिच्छू ने काटा हो। इसलिए इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है। बिच्छू घास के पत्तो एवं तनो पर हलके सुई की तरह कांटे होते है, जहां लोग इस पौधे को छूने से डरते है, तो वहीं इस पौधे के कई मेडिसिनल गुण भी हैं।
बिच्छू घास को शरीर के किसी पर चोट के कारण सूजन है तो बिना इस पौधे के टहनी से एक-दो छपाक लगा दो, पांच मिनट में सूजन एव दर्द गायब हो जाएगा। अंग्रेजी में नेटल के नाम से जानी जाने वाला यह पौधा उत्तराखंड, हिमाचल, कश्मीर, नेपाल व हिमालय के मध्य पहाडी क्षेत्र तथा उपत्यका में मिलने वाला अट्रिक्यसी परिवार का झाड़ है। इसमें औषधीय गुणों को खजाना होता है। इसे उबाल के खाया जा सकता है। इसमें होने वाले रोम जैसे पतले कांटे में फर्मिक अम्ल के कारण से जलाने वाले हिस्टामाइन होते हैं, जो पीड़ादायक होते हैं। लेकिन, इसे पानी में उबालने के बाद वे तत्व समाप्त हो जाते हैं। इसके इन्हीं दुर्गुणों के कारण पहले यातना देने तथा सजा देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था।
कंडाली में मिलने वाली विटामिन्स में प्रमुख रूप से विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन डी लौहतत्व, पोटेसियम, म्यागानिज, कैल्सियम जैसे पौष्टिक पदार्थ भी पाए जाते है। उत्तराखंड के कंडाली उत्तरी तथा पूर्वी युरोप में इसकी करी लंबे समय से प्रचलित रही है। इसमें 25% सम्म् प्रोटिन होता है इसलिए यह शाकाहरीओं के लिए अति उत्तम भोजन है। बिच्छू घास को उत्तराखंड में साग बनाकर भी खाया जाता है जो स्वस्थ्य के लिए बेहद पोष्टिक होता है तथा स्वादिष्ट भी होता है।