हरिद्वार, कांवड़ यात्रा पर इस बार खूंखार जानवरों का साया है। इस खतरे को भांपते हुए वन विभाग ने अपनी तैयारियों के अलावा स्थानीय लोगों से मदद की अपील की है। साथ ही कांवड़ियों को भी दिशा निर्देश जारी करने के लिए पोस्टर और होर्डिंग जगह-जगह पर लगा रही है ताकि सभी भक्त इस खतरें से वाकिफ होकर सचेत रहें।
दरअसल, कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ियों को उस आदमखोर गुलदार के इलाके से निकलकर हरिद्वार से ऋषिकेश जाना पड़ता है जहां अब तक लगभग 21 से ज्यादा लोगों को गुलदार मौत के घाट उतार चुका है। रायवाला क्षेत्र बीते कई सालों से आदमखोर गुलदार ने आतंक से परेशान है, रायवाला के लगभग 12 से 15 गांवों में इस गुलदार की ऐसी दहशत है कि शाम होते ही लोग अपने घरों में दुबक जाते हैं। आलम ये है कि हाईवे पर भी शाम होते ही सन्नाटा पसर जाता है, अब तक यहां रहने वाले आदमखोर गुलदार 21 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार चुका है।
वन विभाग और जिला प्रशासन इस बात पर मंथन कर रहा हैं कि यहां से चलने वाली कांवड़ यात्रा को कैसे सकुशल संपन्न किया जाए। कावड़ यात्रा ना केवल दिन में चलती है बल्कि रात के अंधेरे में भी कांवड़िया इसी रोड से जाते हैं। लंबी दूरी तय करने वाले यह कांवड़िया हरा भरा जंगल देखकर यहां पर ना केवल दिन में विश्राम करते हैं बल्कि रात को भी आराम करने के लिए इस जंगल के किनारे बनी सड़क का सहारा लेते हैं। इन्हीं सबको ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने अब कांवड़ियों को गाइडलाइन जारी की है।
प्रमुख वन संरक्षक जयराज का कहना है कि, “कांवड़ मेले को देखते हुए पूरे इलाके में वन विभाग की पोस्ट को ज्यादा संख्या में तैनात किया गया है। कांवड़ मेले के दौरान लगातार पेट्रोलिंग की जाएगी। साथ ही मोतीचूर से लेकर रायवाला तक का लगभग 2 किलोमीटर का मार्ग वन विभाग की टुकड़ियों से पटा होगा। ये पूरा इलाका आबादी से चारों तरफ से घिरा हुआ है।” राजाजी टाइगर रिजर्व के कारण बाघों का कई बार खुले तौर पर यहां पहुंच जाना भी चिंता का कारण रहता है। आदमखोर का आंतक पिछले दो-तीन साल से इस क्षेत्र में काफी बढ़ा है। हालत ये है कि अब ग्रामीण अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
इस मसले पर पुलिस प्रशासन ने भी इस पूरे मामले पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। एडीजी अशोक कुमार ने साफ कह दिया है कि, “इस मामले में वो वन विभाग की कोई मदद नहीं करे सकते क्योंकि पुलिस फोर्स गुलदार या जंगली जानवरों को पकड़ने में एक्सपर्ट नहीं होती। इसलिए वन विभाग को अपना इलाका खुद ही नियंत्रण करना होगा। “