सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है बंड के नौ गांव

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गोपेश्वर, यदि सलुड का रम्वाण ने यूनिस्को ने विश्व धरोहर माना तो इस धरोहर को संजोने और संवारने में गांव की कई पीढियों के साथ-साथ नई पीढी का भी योगदान रहा है। ठीक उसी तरह चमोली जिले के बंड क्षेत्र के 9 गांवों के लोग आज भी पांडव लीला व जीतू बग्डवाल नृत्य को संजोये हुए है।

बंड के इन 9 गांवों में संस्कृति और विरासत को संवारने व सजोने की गजब की भावना व एकता दिखती है। बुजुर्गों के निर्देशन में युवा पीढी गढ़वाल की संस्कृति को बचाये रखने और उसे बडे सम्मान के साथ आयोजित करने में आगे आ रहे है। इन गांवों में आजकल पांडव नृत्य और बग्डवाल नृत्यों का आयोजन हो रहा है। हाल ही में नौरख गांव में पांडव नृत्य हुआ तो अब पाखी गांव में पांडव नृत्य हो रहा है। बाटुला गांव में 13 वर्षों बाद बग्डवाल नृत्य का आयोजन हो रहा है।

गढ़वाल की संस्कृति के वे पन्ने जो कहीं और धूल फांक रहे है। इस इलाके के युवाओं ने संस्कृति और विरासत की किताब के पन्ने को करीने से सजाया और पढा है और उसी के आधार पर सभी 9 गांवों में अलग-अलग आयोजन हो रहे है। पुरानी परंपरा और विरासत के साथ बहुत कुछ छेडछाड किये बिना उसे रोचक बनाने के लिए कुछ नये स्वरूप तो दिये जा रहे है मगर ये उतनी ही सीमा तक है जो संस्कृति और विरासत के मूल भाव को विकृत न करे।

युवा पीढ़ी में दिखती है संस्कृति के प्रति ललक
बंड के नौ गांवों के युवा शिक्षा, विज्ञान, कृषि आदि क्षेत्रों में भले ही देश विदेश के अन्य क्षेत्रों में हो मगर अपने गांवों में पांडव, बग्डवाल नृत्य व अन्य संस्कृति के प्रति अभी भी जमीन से जुडे हुए है। कई प्रवासी परिवार और युवा इन्हीं आयोजन में अपनी जडों से जुडने के लिए गांव में आते है।

यहां के युवा रचना धर्मी संजय भंडारी बताते है बंड के गांवों में हमेशा से संस्कृति के प्रति जिज्ञासा रही है और अपनी जडों को समृद्ध करने के प्रति अध्ययन कर उसे मंचित करने के प्रति जिज्ञासा रही है। यहां के विनोद पंत, अतुल शाह कहते है कि बुजुर्गो के निर्देशन में अपनी संस्कृति को निरंतर आगे बढाने के प्रति दृढ संकल्पित है।