उधमसिंहनगर। ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी हरिपुरा जलाशय का वजूद आज विभागीय उदाससीनता के चलते सिमटने की कगार पर है। जलाशय का आधे से ज्यादा भाग जहां जंगली घास से पट गया है, वहीं लगातार सिल्ट जमा होने से इसकी जलधारण क्षमता बहुत कम हो गई है। गुजरे मानसून सीजन की पर्याप्त बारिश के बावजूद तालाबनुमा बन चुके जलाशय से हजारों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई कैसे और कब तक होगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
साठ के दशक में पहाड़ से आने वाली नदियां तराई में व्यापक तबाही मचाया करती थीं। इससे तराई क्षेत्र में कई दफा बाढ़ जैसे हालात भी बने। बाढ़ की रोकथाम के साथ-साथ मत्स्य पालन व सिंचाई की बहुद्देश्यीय योजना के तहत सत्तर के दशक में तीन नदियों को घेरकर 7.9 किमी क्षेत्र में हरिपुरा जलाशय का निर्माण किया गया। जिसका शुभारंभ तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने किया था। यह जलाशय उत्तराखंड की 7038 हेक्टेयर जबकि उप्र रामपुर की 13758 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करता है। पिछले 10-15 वर्षों से लगातार सिल्ट जमा होने व जंगली घास उग आने से डैम की जलधारण क्षमता लगातार घटती जा रही है। जिसके चलते दोनों राज्यों की हजारों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई पर संशय गहरा गया है। पूर्ण जलस्तर 795 फीट के सापेक्ष मौजूदा जलस्तर 788.8फीट है लेकिन, यह महज आंकड़ा भर से ज्यादा नहीं। इधर क्षेत्र में गेहूं की बुआई जोरो पर है। ऐसे में जलाशय के पानी से अगले दो माह में हजारों हेक्टेयर भूभाग सिंचित हो पाएगा इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। यदि विभागीय अफसरानों की अनदेखी यूं ही रही तो सिंचाई के लिए हाहाकार मचना तय है।
वहीं अवर अभियंता सिंचाई विभाग प्रेम सिंह गंगोला ने बताया कि निश्चित रूप से डैम में जमा गाद बड़ी समस्या है। डिसिल्टिंग के लिए पिछले डेढ़ साल से कई निजी कंपनियों से बात चल रही है। लेकिन महंगे ट्रांसपोर्ट से कई कंपनियों ने हाथ पीछे खींच लिए। उम्मीद है कि रामपुर-काठगोदाम हाईवे निर्माण के लिए जलाशय में जमा सिल्ट को खाली करा लिया जाएगा।