पंच केदारों में तृतीय केदार के नाम से विख्यात भगवान तुंगनाथ के कपाट बुधवार को शुभ लग्नानुसार साढ़े ग्यारह बजे शीतकाल के लिए पौराणिक परम्पराओं व रीति-रिवाजों के अनुसार बन्द कर दिये गये। कपाट बन्द करने के लिए देवस्थानम् बोर्ड ने सभी तैयारियां पूरी की और कपाट बन्द होने के पावन अवसर पर शिरकत करने वाले श्रद्धालु भगवान तुंगनाथ के धाम पहुंचे।
तुंगनाथ धाम के प्रबन्धक प्रकाश पुरोहित ने बताया कि विद्वान आचार्यों, हक-हकूकधारियों तथा वेदपाठियों द्वारा भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग की विशेष पूजा अर्चना कर जलाभिषेक कर आरती उतारी गई। दस बजे सुबह से भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को चन्दन, भस्म, भृंगराज, पुष्प, अक्षत्र से समाधि दी गई। ठीक 11 बजकर 30 मिनट पर भगवान तुंगनाथ के कपाट पौराणिक परम्पराओं को रीति-रिवाजों के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिये गये।
उन्होंने बताया कि भगवान तुंगनाथ के कपाट बन्द होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली धाम से रवाना होकर विभिन्न यात्रा पड़ावों पर श्रद्धालुओं को आशीष देते हुए तथा सुरम्य मखमली बुग्यालों में नृत्य करते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंचेगी। पांच नवम्बर को चोपता से प्रस्थान कर बनियाकुण्ड, दुगलबिट्टा, पवधार, मक्कूबैण्ड, डूण्डू, वनातोली होते अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड पहुंचेगी। उन्होंने बताया कि 6 नवम्बर को भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली भनकुण्ड से रवाना होगी और शुभ लगनानुसार अपने शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मन्दिर मक्कूमठ में विराजमान होगी।