चीन सीमा पर बढ़ी चौकसी, चरवाहों को बाडाहोती क्षेत्र में जाने की इजाजत नहीं

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भारत-चीन सीमा पर अतिरिक्त चौकसी के कारण इस बार चरवाहों को बाडाहोती क्षेत्र मे जाने की अनुमति नहीं मिल सकी। हालांकि नीती घाटी के अन्य उच्च हिमालयी बुग्यालों में भेड़-बकरी चुगान के लिए प्रशासनिक स्तर से संस्तुति मिल चुकी है और चरवाहे  इन स्थानों में पंहुच भी गए हैं।
लद्दाख की गलवान घाटी की घटना के बाद इस बार चरवाहों को फिलहाल बाडाहोती क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं मिल सकी है। चमोली जनपद से लगी भारत-चीन सीमा पर बाडाहोती पर ही चीन की कुदृष्टि हमेशा से रही है। इस इलाके में कई बार चीन के सैनिकों ने घुसपैठ का प्रयास किया भी है। यहां तक कि इस इलाके में वायुसीमा का उल्लंघन भी करने से यदाकदा चीन बाज नहीं आता है। गलवान की घटना के बाद स्वाभाविक रूप से इस सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। इसी के चलते फिलहाल चरवाहों को बाडाहोती क्षेत्र मे जाने की अनुमति नही मिल सकी है। फिलहाल इस पर भेड़ पालक संघ को किसी प्रकार का एतराज भी नहीं है, क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने बिना किसी देरी के नीती घाटी के अन्य उच्च हिमालयी बुग्यालों मे चरवाहों को जाने की अनुमति दे दी है। अब तक 10 से 15 टोली भेड़-बकरियां अनुमति मिले स्थानों मे पंहुच चुकी हैं। हर टोली मे एक हजार से 1500 तक भेड़-बकरियां होती हैं।
भारत-चीन सीमा पर बाडाहोती भेड़ पालकों का सबसे पंसदीदा क्षेत्र है। हर वर्ष करीब दो दर्जन से अधिक भेड-बकरियों की टोली जून से सितम्बर तक यहां रहती है। इसी क्षेत्र मे पूर्व के वर्षों में चीन द्वारा कई बार घुसपैठ कर पालसियों के टेण्ट व राशन को भी नष्ट करने की घटना को अंजाम दिया गया था। इसके वावजूद चरवाहे भेड़-बकरियों को इसी क्षेत्र मे ले जाना पंसद करते है। उल्लेखनीय है कि भेड़ बकरियों के चुगान के साथ ही ये चरवाहे मजबूत सूचना तंत्र का भी काम करते हैं। भेड़ पालक कल्याण समिति चमोली के सचिव रमेश सिंह फरस्वांण के अनुसार उन्हें उम्मीद है कि भारत-चीन के बीच वर्तमान परिस्थिति सामान्य होने के बाद चरवाहों को बाडाहोती जाने की अनुमति भी मिल सकेगी।
भेड़ पालन कल्याण समिति, चमोली के सचिव एंव उत्तराखंड शीप एंव ऊल डेवलेपमेंट बोर्ड के सदस्य रमेश फरस्वांण कहते है कि चमोली जनपद की नीती-माणा घाटियों में भेड़ पालकों को आवागमन की कोई समस्या नहीं होती लेकिन शीतकाल मे जब भेड़-बकरियों के साथ तराई व भाबर क्षेत्र मे पंहुचते हैं तो वहां स्थानीय समुदाय के साथ ही वन विभाग भी बेहद परेशान करता है। भेड़ पालकों को तराई क्षेत्रों मे अपना पड़ाव अथवा शिविर बनाने के लिए कई बार भूमि दिए जाने की मांग पर वर्ष 2014 मे उत्तराखंड सरकार ने भेड़ पालकों का आवास स्थल/पशुशाला प्रयोग हेतु 180 वर्ग गज फीट भूमि का आवंटन करने के लिए ऊधम सिंह नगर और हरिद्वार जनपदों को छोड़कर शेष सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए गए थे। इसके बावजूद इस पर 6 वर्ष बीतने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।
फरस्वांण ने कहा कि भेड़ पालकों के साथ तराई क्षेत्र मे हो रही घटनाओं से क्षुब्ध होकर कई भेड़ पालक अब इस व्यवसाय से पीछे हटने लगे हैं। हालांकि सरकार पलायन रोकने और सीमावर्ती क्षेत्र में मजबूत सूचना तंत्र का काम करने मे अग्रणी भेड़ पालन व्यवसाय को चुनने के लिए प्रेरित करती रही है। इस बार भेड़ पालक संगठन ने चरवाहों को बिना किसी देरी के बाडाहोती छोड़कर अन्य स्थानों के लिए अनुमति देने पर स्थानीय प्रशासन का आभार जताया है।