उपलब्धि: उत्तराखंड की शीतल ने लहराया माउंट एवरेस्ट पर परचम

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2001
Mount Everest, Young, Climber, Mountaineer
Indian mountaineer unfurls the tri colour atop Mount Everest

आज उत्तराखंड के लोगों की सुबह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी से गौरवान्वित करने वाली खबर से हुई। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की 24 साल की शीतल ने इतिहास रचते हुए माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया।

आज से लगभग 25 दिन पहले  माउंट एवरेस्ट पर फतह के इस सफर की शुरुआत करते हुए शीतल ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा था किः

मैं अब एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंच चुकी हूं। मैं अपना सपना जी रही हूं और आज रात बेस कैंप 2 पर क्लाईट एक्लेमेटाइजेशन के लिए जाऊंगी।

आप सभी के प्यार और समर्थन के लिए एक बार फिर धन्यवाद।।

इन शब्दों से शीतल ने अपने सफर की शुरुआत की और आज वह सफलता पा चुकी हैं।

8,848 मीटर की ऊंचाई को शीतल ने अपनी 42 वर्षीय कनाडाई महिला साथी पर्वतारोही और तीन शेरपा के साथ चढाई पूरी करके अपने देश को विश्व के मैप पर अंकित कर दिया है।

अपने साथी पर्वतारोहियों के बीच शीतल एक ऐसे पर्वतारोही के तौर पर जानी जाती है जो ऊंचाई, अत्यधिक तापमान, कम ऑक्सीजन और लो ऑक्सीजन हवाओं में भी जूनुन में जीती है। और अपनी इन सब खूबियों और हौसले के साथ शीतल ने किसी को निराश नहीं किया। वह माउंट एवरेस्ट को फतह करके अपने देश का तिरंगा लहरा चुकी हैं साथ ही यूनाईटेड नेशन के एसजीडी झंडे को भी उन्होंने 8,848 की ऊंचाई पर लहराया।

शीतल ने 13 मई को इस ऐतिहासिक चढ़ाई की शुरुआत की थी। 13 मई को पांच लोगों की टीम सुबह 3:00 बजे कैंप 2 तक पहुंची।उसके बाद 14 मई को वह कैंप 3 में पहुंचे, और 15 मई को कैंप 3 से कैंप 4 तक की चढ़ाई पूरी की। कल रात (15 मई) 8 बजे रात को शीतल ने अपने साथियों के साथ मिलकर शिखर पर अंतिम चढ़ाई शुरू की, जिसे उसने आज सुबह पूरा किया।

एक पर्वतारोही और शीतल के मार्गदर्शक, योगेश गर्ब्याल, जो शीतल के संरक्षक और प्रशिक्षक है, उन्होंने यह खबर साझा करते हुए, हमें बताया कि, “मुझे उसकी क्षमताओं पर कोई शक नहीं था।आप विश्वास नहीं करेंगे और कोई भी उसके कद को देखकर विश्वास नहीं करेगा जब तक कि आप उसे बर्फीली पहाड़ों की ऊँचाई पर चढ़ते नहीं देखते।”

अपने युवा पर्वतारोही के बारे में हमें और अधिक बताते हुए योगेश कहते हैं, “शीतल ने महीनों तक बर्फ में चलने का प्रशिक्षण लिया है। पिथौरागढ़ की सीमा पर स्थित दारमा और व्यास घाटी में 3000-5500 मीटर की ऊंचाई पर भी चलने की ट्रेनिंग ली है। इस सारी ट्रेनिंग से उसकी सहनशक्ति और स्टेमेना बढ़ा है, शीतल ने सर्दियों में लेह में 20 किलो वजन के साथ बर्फ में रोजाना 8-9 घंटे ट्रेनिंग ली है।”

अप्रैल 2018 में, इस युवा पर्वतारोही ने माउंट कंचनजंगा शिखर पर चढ़ाई कर विश्व में सबसे कम उम्र की महिला पर्वतारोही होने का प्रतिष्ठित खिताब जीता है।

हालांकि अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि हासिल करने के बावजूद राज्य सरकार उसकी प्रशंसा से बेखबर थी और किसी भी तरह से उसकी मदद  नहीं कर पाई। शीतल ने अपने एवरेस्ट अभियान 2019 के लिए पैसे इकट्ठा करने के लिए राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, संस्थानों, कॉर्पोरेट घरों का ध्यान जीतने की भरपूर कोशिश की।

लेकिन अंत भला तो सब भला और निश्चित रूप से यह बात इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है कि उत्तराखंड में एक और यूथ-आइकॉन है जिसे वे गर्व से अपना कह सकेंगे।