उत्तराखंड के एक चौथाई शहरों मे नही है सीवर लाइनें

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उत्तराखंड के एक चौथाई शहरों में सीवर लाइनें और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट नही हैं। इस बात से ये साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वच्छता पर जहां केंद्र सरकार और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरा ज़ोर दे रहे हैं वहीं राज्य की बीजेपी सरकार कितना संजीदा है। मंगलवार को देहरादून में एख समीक्षा बैठक के दौरान ये बात निकलकर सामने आई कि प्रदेश के कुल 92 नगरो में से केवल 26 में ही सीवर की व्यवस्था है। न केवल ये बल्कि आने वाले दिनों में इस चुनौती को खत्म करना भी सरकार के लिये टेढ़ी खीर होगा। उसका कारण है कि सभी नगरों में सीवरेज प्रणाली और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए 4229 करोड़ रूपये की ज़रूरत है। कर्जों में ढूबी राज्य सरकार के लिये ये रकम जुटाना कोई आसान काम नही होगा।

वहीं पानी की व्यवस्था से जुड़े आंकड़ों की बात करे तो इस साल कुल 316 बस्तियों में पीने के पानी की समस्या आई। जिसमें 151 टैंकरो से पानी मुहैया कराया गया। पानी का संकट निहार रहे प्रदेश के सामने पानी से जुड़ी काफी समस्यायें हैं:

  • प्रदेश में सभी पेयजल स्रोतो के नये सर्वे और मैपिंग के कार्य में तेजी लाना।
  • जल स्रोतो के रख रखाव के बारे में जागरूकता की कमी
  • छोटे-छोटे जलाशयों को बनाकर ग्राउण्ड वाॅटर रिचार्ज युनिट की कमी
  • जल संस्थान को पानी की टंकियो की नियमित सफाई।

वहीं करीब 40 हजार गांवों में से आधी बस्तियों तक ही पूरी पानी की व्यवस्था हो पाई है। करीब 17 हजार बस्तियों में आंशिक रूप ये व्यवस्थाऐं हो पाई हैं। बाकी बस्तियों में नई योजनाएं शुरू करने के लिए करीब 3402 करोड़ रूपये की जरूरत पडेगी।

उत्तराकंड गंगा और कई छोटी बड़ी नदियों का उदगम स्रोत्र है। लेकिन इसके बावजूद अगर राज्य पानी से जुड़ी किल्लतों का सामना कर रह ैह तो इसे राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी ही कहेंगे।