विकासनगर/त्यूनी, मौसम की बेरुखी से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ना तय है। जनवरी का पहला पखवाड़ा बीतने को है बावजूद अब तक क्षेत्र में बर्फबारी नहीं हो सकी है। ऐसे में शीतोष्ण फलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है। क्षेत्र के करीब 800 हेक्टेयर भू-भाग में शीतोष्ण फल खासकर सेब की पैदावार की जाती है। 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच होने वाली बर्फबारी इस फसल के लिए खासा मुफीद मानी जाती है। लेकिन इस साल अब तक बर्फबारी नहीं हुई है। जिससे सेब के बागों के मालिक मायूस नजर आने लगे हैं। विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि यदि जल्द क्षेत्र में बर्फबारी नहीं हुई तो उत्पादन में 30-40 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
यहां होती है सेब की बंपर पैदावार
कथियान, डांगूठा, भटाड़, छजाड़, रायगी, ऐठाड़, पुरटाड़, भूट, फनार, कुल्हा, बागी, बास्तिल, ठारठा, पिंगुवा, बुल्हाड़, बायला समेत कई गांव में सेब की बंपर पैदावार होती है। वहीं, बारिश न होने से आड़ू, नाशपाती, खुमानी, पुलम, बादाम आदि की खेती भी प्रभावित हो रही है।
सेब की ये प्रजातियां होती है क्षेत्र में
क्षेत्र में रॉयल डिलिसियस, गोल्डन रेड, स्पर्श, रेड चीफ, सुपर स्पर्श, गोल्डन स्पर्श, आर्गेन स्पर्श, रेड चीफ स्पर्श आदि प्रजाति होती है। क्षेत्र में करीब 800 हेक्टेयर में सेब के बागान हैं। यहां के सेब की बाजारों में भारी डिमांड रहती है।
एक पेड़ पर 1500 रुपये तक खर्च बागवान तुलाराम शर्मा, विरेंद्र शर्मा, मातवर सिंह का कहना है कि, “एक पेड़ की देखरेख पर सालाना 1000 से 1500 रुपये खर्च होते हें। ऐसे में इस साल ये लागत भी निकालना मुश्किल लग रहा है।”
उद्यान प्रभारी त्यूनी आरपी जसोला का कहना है कि, “बर्फबारी के चलते लंबे समय तक जमीन में नमी का संरक्षण रहता है। जिसका फायदा फलों और फूलों के उत्पादन में होता है। साथ ही कीटों और बीमारियों के पनपने की आशंका कम रहती है। खुमानी, नाशपाती, अखरोट, बादाम के लिए भी बर्फबारी लाभदायक होती है। बर्फबारी चिलिंग की आवश्यकताओं को भी पूरा करती है। लेकिन इस साल मौसम के बदले मिजाज के बीच फलों के उत्पादन पर प्रगतिकूल असर पड़ेगा।”