देहरादून। भले ही समाज कल्याण निदेशालय ने दो साल पहले उत्तराखंड राज्य में भिक्षावृत्ति पर पूर्ण रुप से प्रतिबंध लगा दिया हो। लेकिन, दून के जिला समाज कल्याण विभाग इससे अंजान है। विभाग को अब तक ये तक पता नहीं चला कि भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लग चुका है। इस संबंध में आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना में इस बात का खुलासा हुआ है।
आरकेडिया ग्रांट ग्राम निवासी आरटीआई कार्यकर्ता वीरू बिष्ट ने जिला समाज कल्याण दून कार्यालय से आरटीआई के तहत सूचना मांगी थी कि उत्तराखंड में भीख मांगने पर रोक का अधिनियम कब लागू किया गया। विभाग में दर्ज आंकड़ों के अनुसार देहरादून व हरिद्वार जिले में भिखारियों की संख्या कितनी है। सरकार ने भीख मांगने वालों के पुनर्वास के लिए क्या व्यवस्था की है। साथ ही विभाग ने इन लोगों के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चला रखी हैं। इसके अलावा कार्यकर्ता ने आरटीआई के तहत विभाग से आठ बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। हैरत की बात है कि बाकी सूचना देना तो दूर की जिला समाज कल्याण कार्यालय ने इस बात से ही साफ इन्कार कर दिया कि उत्तराखंड राज्य में भीख मांगने पर रोक संबंधी अधिनियम कार्यालय में धारित ही नहीं है। इसके अलावा न ही विभाग के पास भिखारियों की संख्या उपलब्ध है और न कार्यालय को भिखारियों के पुनर्वास के लिए कोई बजट प्राप्त हुआ है। जबकि, स्थिति ये है कि जिला प्रशासन व पुलिस की ओर से लगातार भिखारियों पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। इसके बाद जब आरटीआई कार्यकर्ता ने अपील दायर की तो तब जाकर विभाग ने माना की उनसे गलती हुई है।
इस मौके पर समाज कल्याण निदेशक मेजर योगेंद्र यादव पहले इस संबंध में पूरी जानकारी एकत्रित की जाएगी। इसके बाद कारणों की पड़ताल करते हुए कार्रवाई की जाएगी।