अबकी बार युवा और सैनिकों की जय-जयकार 

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देहरादून, लोकसभा चुनावों का बिगुल पूरे देश मे बज चूका है सभी पार्टियों ने जोर शोर से तैयारी शुरू कर दी है।उत्तराखंड में भी पांच सीटो पर 11 अप्रैल को वोट डाले जायेंगे पर इस समय उत्तराखंड की पांचो सीट पर सबसे ज्यादा जिनका प्रभाव रहेगा वो है युवा वोटर, सैनिक और उनके परिवार।

उत्तराखंड की दोनों ही बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस उनको अपना वोटर मान कर चल रही हैं मगर 11 अप्रैल को क्या होगा ये अभी कहना बेहद मुश्किल है।

उत्तराखंड राज्य में इस बार युवा वोटर, सैनिक , पूर्व सैनिक और उनके परिवार के सदस्यों को इस बार लोकसभा चुनाव में  गेम चेंजर के रूप   में देखा जा रहा है , उत्तराखंड में इस बार युवा मतदाताओं की संख्या 21,20,218 है। यह कुल मतदाताओं का 27.54 फीसदी है।  हर सीट पर अगर नजर डाले तो हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा युवा मतदाता हैं। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 18 से 29 आयुवर्ग के मतदाताओं की कुल संख्या 21,20,218 है, हरिद्वार जिले में 4,21,365 युवा मतदाता हैं, उत्तरकाशी जिले में 70217 युवा मतदाता हैं। पिथौरागढ़ में 94230, चमोली में 78806, रुद्रप्रयाग में 49369, टिहरी में 130452, देहरादून जिले में 331260, बागेश्वर में 50675, पौड़ी में 139332, नैनीताल में 194337, अल्मोड़ा में 128320, ऊधमसिंह नगर में 378519 और चंपावत जिले में 53196 युवा मतदाता हैं। जबकि पूरे राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 76,98,293 हैं।

उत्तराखंड एक सैन्य प्रदेश भी माना जाता है, पर्वतीय जिलों में हर दूसरे परिवार से कम से कम एक व्यक्ति सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में तैनात है। प्रदेश में इस समय तकरीबन एक लाख सर्विस वोटर हैं। हालांकि, इनकी संख्या घट-बढ़ती रहती है, विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सेना में डेढ़ से पौने दो लाख सैनिक उत्तराखंड से हैं। प्रदेश में पंजीकृत पूर्व सैनिक तथा वीर नारियों की संख्या पर नजर डालें तो यह संख्या भी 1.62 लाख से उपर है।इसके अलावा पचास हजार से अधिक युवा अर्द्धसैनिक बलों में तैनात हैं। तकरीबन तीस हजार सेवानिवृत्त अर्द्धसैनिक हैं। इस तरह सैनिक और पूर्व सैनिक परिवारों की राज्य में खासी संख्या है। इनके परिजनों की संख्या लगभग अठारह लाख तक होने का अनुमान है।

सेवानिवृत सैनिकों की माने तो उनकी राय पक्ष विपक्ष दोनों के साथ जाती दिखाई देती है , उनका मानना है कि सरकार को एक और मौका मिलना चाहिये, हालांकि वो ये भी मानते हैं कि बहुत सी चीज़े और वायदे हैं जिनको अभी पूरा करना बाकी है ऐसे में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा ये कहना अभी मुश्किल नज़र आता है कम से कम उत्तराखंड में तो यही आभास होता दिखाई दे रहा है

उत्तराखंड के युवा वोटर्स से बात की तो पता चला कि वो पहली बार अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे मग़र सवाल उनके भी बेरोजगारी से ही जुड़े हैं। युवा वोटर्स की माने तो उनको इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि सरकार किसकी बने मगर जिसकी भी बने उनके लिए रोजगार जरूर हो। बहरहाल 11 अप्रैल को होना क्या है ये अभी भविष्य के गर्त में है मगर दोनों ही मुख्य राजनीतिक पार्टी चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही युवा वोटर्स औऱ सैनिकों के वोटों को अपना मान कर चल रही हैं,  कांग्रेस जहां अबकी बार युवा वोटर्स के जरिये केंद्र की सरकार में उत्तराखंड की पांचों सीटों का योगदान देने की बात कर रही है तो दूसरी और भाजपा नरेंद्र मोदी के द्वारा किये गए युवाओं के लिए कार्य को बता कर एक बार फिर से मोदी सरकार की बात कर रही है।