राज्य में सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीरो टॉलरेंस का दावा किया था, लेकिन प्रदेश के सिस्टम पर इस दावे का कोई असर नहीं दिख रहा। परिवहन निगम को देखें तो दो माह पूर्व जिन टायरों की खरीद की गई थी, उनमें से घोटाले की बू आने लगी है। टायरों की गुणवत्ता ऐसी कि 40 से 60 हजार किमी तक चलने वाले टायर दस हजार किमी चलने के बाद ही उतर गए। भ्रष्टाचार की इस बू के बीच कर्मचारी यूनियनों में भी आक्रोश पनपने लगा है।
उत्तराखंड परिवहन निगम एक तरफ बजट का रोना रो रहा है और दूसरी तरफ निगम के अधिकारी मौज कर रहे हैं। परिवहन निगम साउथ की जेके टायर कंपनी से टायरों की खरीद करता है। लंबे समय से भुगतान न होने से कंपनी ने टायरों को भेजने से मना कर दिया था। दो माह पूर्व मुख्यालय ने करीब एक करोड़ रुपये का भुगतान कर 150 नए टायर मंगाए थे। ये टायर कुमाऊं रीजन को भेजे गए। कुमाऊं रीजन ने उधारी चुकाते हुए 50 टायर टनकपुर रीजन को भेज दिए तथा बचे टायर आठ डिपो में जरूरत के मुताबिक वितरित कर दिए। टायरों की गुणवत्ता इतनी खराब रही कि दस हजार किमी चलने के बाद ही ये घिस गए और बसों से उतार दिए गए। जबकि मानकों के अनुसार एक टायर पर्वतीय मार्ग पर 40 हजार व मैदानी मार्ग पर 60 हजार किमी चलता है। कारण यह कि पर्वतीय मार्ग पर मोड़ अधिक होने के कारण टायर जल्दी घिसते हैं। इधर, कर्मचारियों ने अधिकारियों पर टायर खरीद में घोटाले करने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग उठाई है।
जब टायरों की गुणवत्ता के बारे में मंडलीय प्रबंधक तकनीकी अनूप रावत से पूछा गया तो यह मानक बदल गए। उन्होंने कहा कि पर्वतीय मार्ग पर अमूमन यह टायर 15 से 20 हजार और मैदानी मार्ग पर 40 से 50 हजार किमी चलते हैं। कुमाऊं रीजन में टायरों का टोटा शुरू हो गया है। मंडलीय प्रबंधक तकनीकी अनूप रावत ने बताया कि रीजन के आठ डिपो में टायरों के अभाव में पांच से आठ बसें खड़ी हो गई है। अगर एक-दो दिन में टायर नहीं आए तो स्थिति और बिगड़ जाएगी। ऐसे में बसों का संचालन करना मुश्किल हो जाएगा। मुख्यालय को 150 टायरों की डिमांड भेजी गई है।