उच्च शिक्षा : न सुविधा न संसाधन, कैसे सुधरेगी गुणवत्ता

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आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में उच्च शिक्षा की तस्वीर बेहद अच्छी नजर आती है, लेकिन हकीकत इससे उलट है। गुणवत्ता के लिहाज से हालात बेहद खराब हैं। बीते दिनों एक कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री के बयान ने भी इस ओर इशारा किया। बीते कुछ वक्त में धड़ाधड़ संस्थान खोले गए, लेकिन इनमें सुविधाओं और मानव संसाधन को लेकर कोई गंभीरता नजर नहीं आती। ऐसे में बेहतर रिजल्ट और क्वॉलिटी एजुकेशन का सपना अभी भी दूर की कौड़ी नजर आता है।
राज्य गठन के बाद 17 साल में राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में पांच गुना इजाफा हुआ। राज्य में नामांकन (एनरोलमेंट) की स्थिति भी सुखद अहसास कराती है। उत्तराखंड में उच्च शिक्षा में नामांकन 3.10 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर केवल 1.90 प्रतिशत। एक करोड़ की आबादी वाले उत्तराखंड में आईआईटी, आईआईएम, आईआईपी, एनआईटी, एफआरआई समेत 28 बड़े उच्च शिक्षा संस्थान हैं। वहीं, निजी, सरकारी, अर्ध सरकारी समेत तमाम तरह के उच्च शिक्षा संस्थानों की कुल संख्या तकरीबन 465 है। राज्य गठन के वक्त यह आंकड़ा महज 90 था। यह तस्वीर का एक पहलू है, जो बेहद उजला नजर आता है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू काफी स्याह है।
राज्य में धड़ाधड़ संस्थान तो स्थापित किए गए, लेकिन इनमें गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। स्थिति यह है कि 99 राजकीय महाविद्यालयों में 44 के पास भवन नहीं है और 20 प्रतिशत के पास जमीन। इनमें से 10 से ज्यादा महाविद्यालय ऐसे हैं, जिनमें 100 छात्र भी नहीं पढ़ रहे। वहीं, इन महाविद्यालयों पर सालाना खर्च एक से डेढ़ करोड़ रुपये आ रहा। ऐसे में प्रति छात्र एक से डेढ़ लाख रुपये सरकारी राशि खर्च किए जाने के बावजूद क्वॉलिटी एजुकेशन नहीं मिल पा रही। वहीं, राज्य के राजकीय महाविद्यालयों में स्वीकृत लगभग 1800 पदों में दो तिहाई खाली हैं। विश्वविद्यालयों के हालात इससे भी बदतर हैं। एकमात्र उत्तराखंड संस्कृत यूनिवर्सिटी के अलावा किसी भी यूनिवर्सिटी के पास स्थायी कुलसचिव तक नहीं है। अन्य पद भी या तो खाली हैं या जुगाड़ से भरे गए हैं।
सिर्फ दो संस्थानों को मिली जगह
राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकन कराने वालों की तादाद भले ही बढ़ी है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है। इसका खुलासा एनआईआरएफ ने किया है। बता दें कि यह भारत सरकार की एक ऐसी संस्था तो पूरे देश में शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता तय करती है। एनआईआरएफ की रैंकिंग फ्रेमवर्क में उत्तराखंड के सिर्फ दो संस्थान आईआईटी रुड़की और आईआईएम काशीपुर को छोड़कर कोई भी संस्थान टाॅप 100 में भी अपनी जगह नहीं पाया।
ऐसे हैं विश्वविद्यालयों के हालात
– श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के पास न अपना भवन और न ही पर्याप्त कार्मिक।
– कुमाऊं विश्वविद्यालय भी मानव संसाधन की कमी से अछूता नहीं।
– उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की परिनियमावली ही अस्तित्व में नहीं आ पाई।
– एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय के पास भी न भवन है और न ही कार्मिक।
– आयुर्वेद विश्वविद्यालय संक्रमण काल से गुजर रहा।
– औद्यानिकी और संस्कृत विश्वविद्यालय भी जुगाड़ तंत्र से चल रहा
– दून विश्वविद्यालय में राजनीति हावी है जो शिक्षा व्यवस्था को गर्त में ले जा रहा है।
– उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय बेहद कम कार्मिकों के साथ छात्रों का भविष्य तय करने की ओर अग्रसर।
उच्च शिक्षा आंकड़ों के आईने में
संस्था-2000-2017
राजकीय महाविद्यालय-34-99
राज्य विश्वविद्यालय-03-10
बड़े उच्च शिक्षा संस्थान-06-28
निजी समेत कुल संस्थान-90-465
मौजूदा स्थिति
कुल महाविद्यालय-99
भवन विहीन-44
भूमि विहीन-19
शैक्षिक पद-1800 (लगभग)
रिक्त पद-684 विज्ञापित
अन्य रिक्त-600 (लगभग)
राज्य विश्वविद्यालय-10
स्थायी कुलसचिव-02 (एक प्रतिनियुक्ति पर राज्य से बाहर)
अन्य पद-लगभग 50 प्रतिशत पद खाली या जुगाड़ से भरे गए।
नामांकन की स्थिति (सितंबर 2014 तक)
उच्च शिक्षा में नामांकन- 3.10 लाख (राष्ट्रीय औसत से लगभग डेढ़ गुणा)
छात्राओं का नामांकन- 40 प्रतिशत
यूनिवर्सिटी के लिए भूमि का आवंटन हो गया है। बीते कुछ वक्त में काफी परेशानियां आई। अब जल्द ही स्थाई कैंपस का कार्य शुरू हो जाएगा। मानव संसाधन भी नहीं है। कम संसाधन में भी बेहतर का प्रयास जारी है। महज पांच स्थाई लोगों के साथ एक लाख छात्रों की परीक्षा कराई जा रही है।
-डॉ. यूएस रावत, वाइस चांसलर, श्रीदेव सुमन यूनिवर्सिटी उत्तराखंड