गरीब मां-बाप की लाडली हिमा के उड़ान से अचंभे में दुनिया

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गुवाहाटी, असम की बेटी हिम दास को आईएएएफ की ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड मेडल हासिल हुआ है| फिनलैंड के टेम्पेरे में जारी आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण जीत कर न सिर्फ इतिहास रचा बल्कि मिल्खा सिंह और पीटी उषा भी जिस काम को नहीं कर पाए थे, कर दिखाया| उसकी इस सफलता पर न सिर्फ असम बल्कि समूचा देश नाज कर रहा है|

मध्य असम के नगांव जिलांतर्गत धिंग के कांदलीमारी गांव में एक बेहद गरीब परिवार में जन्म लेने वाली साधारण-सी बच्ची हिमा दास आज असम व भारत ही नहीं पूरे विश्व में जाना-पहचाना नाम बन गई है। आज से दो वर्ष पहले इस नाम को कोई नहीं जानता था। समूचा विश्व 18 वर्षीय साधारण-सी दिखने वाली हिमा दास की प्रतिभा से अचंभित है।

उल्लेखनीय है कि नगांव जिले कांदुलीमारी गांव बेहद पिछड़े इलाकों में गिना जाता है| किसी को कल्पना भी नहीं होगी की ऐसे इलाके में देश की असाधारण प्रतिभा छिपी हुई है। अपनी लगन, मेहनत और परिवारवालों के आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हिमा ने मात्र दो वर्षों में देश के एथलटिक्स जगत में अपनी धमक से सबको आश्चर्यचकित कर दिया है।

हिमा दास ने भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय की रचना कर डाली। फिनलैंड में अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 मीटर की दौड़ में हिमा ने अमेरिका, जमाइका जैसे देशों के धावकों को पीछे छोड़ते हुए प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया। गुरुवार रात भारतीय समयानुसार 10.40 पर फिनलैंड के रेटिना स्टेडियम में हिमा दास ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ 51.46 सेकंड में 400 मीटर की दौड़ पूरी कर स्वर्ण पदक हासिल किया।

हिमा इस वर्ष के अप्रैल माह में कामनवेल्थ गेम्स में महज कुछ सेकंड की वजह से पदक पाने से वंचित रह गई थी| उसने इसी माह की शुरुआत में गुवाहाटी के सोररूसजाई स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय एथलेटिक्स स्पर्धा में 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल कर एशियन गेम का टिकट हासिल किया था।

9 जनवरी, 2000 में जन्मी कांदलीमारी गांव के खेतों में हिमा बच्चों के साथ मिट्टी और पानी में फुटबॉल खेलती नजर आती थी, लेकिन आज अपनी प्रतिभा के बल पर हिमा ने देश की दूसरी उड़नपरी का गौरव हासिल कर लिया है। मात्र दो वर्ष के अंदर इतनी बड़ी सफलता अर्जित करना भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी देखने को विरले ही मिलता है। हिमा दास की यात्रा आज के समय किसी फिल्मी कहानी की तरह दिखाई देती है। पहले अपने गांव में बच्चों के साथ दौड़ती थी, लेकिन आज ट्रैक पर इतनी रफ्तार पकड़ी की सारा विश्व उसके पीछे छूट गया। हिमा की इस उपलब्धि पर उसकी माता जोनाली देवी, पिता रंजीत दास व कांदलीमारी गांव के निवासी ही नहीं समूचा राज्य गौरवान्वित महसूस कर रहा है। असम का खेल जगत हिमा की इस उपलब्धि का बखान करते नहीं थक रहा है।

ज्ञात हो कि हिमा दास की इस उपलब्धि में उनके शुरुआती कोच निपन दास और नवजीत मालाकार की भूमिका अहम है। हिमा की प्रतिभा को इन दोनों ने पहचाना और उसे प्रशिक्षण देकर जिला स्तर पर पहुंचाया। वहां से फिर उसने राज्य स्तर पर अपनी पहचान बनाई।

ज्ञात हो कि गुवाहाटी में आयोजित एशियन गेम्स में हिमा की उपलब्धि से प्रभावित होकर असम के मुख्यमंत्री ने न सिर्फ सम्मानित किया था बल्कि सरकार की ओर से हिमा की हर संभव सहायता करने का आश्वासन दिया था।