उत्तराखंड में रंगों का त्योहार होली धूम धाम से मनाई गई। उत्तराखंड के कुमाऊं की बैठकी और खड़ी होली देश-दुनियाभर में जानी जाती है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष ने प्रदेशवासियों से उमंग और आपसी सौहार्द्र के पर्व को आपसी सद्भाव व भाईचारे के साथ मनाने की सभी से अपील की।
होली के उत्सव में रंग देहरादून सहित गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में बैठकी होली के बाद खड़ी होली के साथ ही हर ओर गुलाल के बीच ढोल-मंजीरे की थाप सुनाई दे रही है। भाजपा मुख्यालय और राजभवन में आज होली मिलन कार्यक्रम चल रहा है। इस मौके पर एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर और पकवान खिलाकर बधाई दे रहे हैं।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने प्रदेशवासियों को होली की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ‘‘हर्ष और उल्लास के रंगों से भरपूर होली का पर्व सभी के जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली के रंग लेकर आये। नवीन उत्साह व उमंग से होली का स्वागत कर एक दूसरे के प्रति प्रेम-भाव और सहयोग को प्रोत्साहित कर सुरक्षित होली मनाएं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उमंग व आपसी सौहार्द्र के पर्व को आपसी सद्भाव व भाईचारे के साथ मनाने की सभी से अपील की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति आपसी भाईचारे का संदेश देती है। मुख्यमंत्री ने होली पर प्रदेशवासियों की सुख शांति एवं समृद्धि के साथ खुशहाल जीवन की भी कामना की।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने प्रदेशवासियों को रंगों के महापर्व होली की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि होली एक ऐसा पर्व है, जो हमारी संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न अंग है। हमें इस पर्व के माध्यम से दोस्ती, प्रेम और सद्भावना को बढ़ावा देना चाहिए। इस पर्व को अपने जीवन में खुशियों का अनुभव करने के लिए अवसर बनाएं और समूचे समाज में भाईचारे और सौहार्द्र का संदेश दें।
कुमाऊँनी होली की उत्पत्ति, विशेष रूप से बैठकी होली की संगीत परंपरा की शुरुआत तो 15वीं शताब्दी में चम्पावत के चन्द राजाओं के महल में, और इसके आस-पास स्थित काली-कुमाऊँ, सुई और गुमदेश क्षेत्रों में मानी जाती है। कुमाऊँनी होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। होली का त्यौहार कुमाऊँ में बसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाता है। कुमाऊँनी होली के तीन प्रारूप हैं; बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली। इस होली में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं होता, वरन बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है। बसंत पंचमी के दिन से ही होल्यार प्रत्येक शाम घर-घर जाकर होली गाते हैं, और यह उत्सव लगभग दो महीने तक चलता है।
उत्तराखंड की बैठकी होली यानी जो होली बैठ कर गायी जाती है और खड़ी होली जोकि खड़े होकर सामूहिक नृत्य के साथ चौराहे चौबारों में गायी जाती है। खड़ी होली ग्रामीण अंचल की ठेठ है जबकि बैठकी होली को नागर होली भी कहा जाता है।