बागवानी किसानों की आमदनी का प्रमुख जरिया हो सकता है। अखरोट, नाशपाती, चाय, सगंध पादप, कुटकी, तेजपात, अतीस, माल्टा, मौन पालन आदि के पैदावार की प्रबल संभावना उत्तराखण्ड में है। इसी दृष्टि से मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने विभागीय समीक्षा की शुरूआत उद्यान विभाग से की। कहा कि, “रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी चारधाम जनपदों से जैविक प्रदेश बनाने की शुरूआत की जाय। बागवानी की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नतशील प्रजाति के बीजों, आधुनिक तकनीक और उपकरण की व्यवस्था की जाए, उद्यान विभाग इसके लिए ठोस कार्य योजना बनाए।”
बैठक में बताया गया कि, “अखरोट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दोनो मंडलों में एक-एक सेंटर आफ एक्सीलेंस बनाया जा रहा है, मुक्तेश्वर, नैनीताल में स्थापित सेंट्रल इंस्टीट्यूट आॅफ टेम्परेट हार्टिकल्चर की भी मदद ली जाए। मंगरा, टिहरी गढ़वाल और चैबटिया में अखरोट की नर्सरी से 50-50 हजार पौध तैयार करने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
राजकीय उद्यानो का लाभ की स्थिति में लाने की योजना बना ली गयी है, निर्देश दिये गये कि जलवायु, ऊंचाई और क्षेत्र के अनुसार प्लांट हार्डीनेस जोन बनाये जायं। पौधरोपण के लिए क्लस्टर एप्रोच अपनाया जाए। उद्यानीकरण में एग्रो क्लाइमेटिक और मृदा की स्थिति का ध्यान रखा जाए। सगंध पादप केन्द्र सेलाकुई का अपना लक्ष्य तय करने के लिए कहा गया। कैप के कार्यों की सराहना करते हुए मुख्य सचिव ने कहा कि कम से कम 5000 हेक्टेयर हर साल सगंध पौधों की पैदावार बढ़ायें।
सुगंध और औषधीय पौधों के पैदावार की पर्याप्त गुंजाइश उत्तराखण्ड में है, इसको बढ़ावा देने के लिए भरसार कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर विश्वविद्यालय, जड़ी-बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर, सगंध पादप केन्द्र सेलाकुई और विभागीय शोध केन्द्र श्रीनगर का सहयोग लिया जाए।