ऋषिकेश, उत्तराखंड राज्य निर्माण के 17 सालो का सफ़र पूरा हो चूका है और ये राज्य अब सतरहवे साल में प्रवेश कर रहा है, इसे में सवाल ये उठता है की इन 17 सालो के सफ़र में उत्तराखंड राज्य अपनी अवधारणा पर कितना खरा उतरा? क्या आज भी पहाड़ का युवा पलायन का दंश झेलने से बच पाया है? राजधानी की सड़के रोज नए आन्दोलन से क्यों जाम रहती है?
उत्तराखंड का जन्म एक बड़े राज्य जनांदोलन के बाद हुआ, यहाँ की आम जनता उत्तर प्रदेश में रहते हुए विकास और रोज़गार से संतुष्ट नहीं हो पा रही थी, रोज़गार और पहाड़ का विकास यहाँ की सबसे बड़ी जरुरत थी, एक लम्बे जनसंघर्ष के बाद आखिरकार 9 नवम्बर 2000 को राज्य का निर्माण हुआ।
अब तक के 17 सालो के सफ़र में भी उत्तराखंड क्या जन भावनाओ पर खरा उतरा? ये सवाल आज भी लोगों के मन को कचोटता है। राजधानी से मात्र 35 किमी दूर गांव बखरोटी के पूर्व प्रधान बुद्धि प्रशाद जोशी का कहना है कि, “17 सालों में उत्तराखंड का विकास उस तरह नहीं हुआ जिसकी उम्मीद उत्तराखंड वासियों ने की थी।” वही उत्तराखंड के आम आदमी भी ये मानता है की आज भी पहाड़, विकास, रोज़गार की बाट जोहते हुए पलायन की मार झेल रहा है। भाजपा और कांग्रेस और सभी छेत्रिय दल आज भी पहाड़ के पानी और पहाड़ की जवानी को नहीं रोक पाए है।
राजधानी की बात करें तो वो भी आज 17 सालों के सफ़र में राजनीती का शिकार हो गयी है, कर्मचारी से लेकर आम जनता सड़को पर हक़ की मांग कर रही है। उत्तराखंड के 17 सालों के सफ़र जहा मैदान विकास की नयी इबारत लिख रहे है, वही अनियोजित विकास और दूरदर्शिता की कमी ने उत्तराखंड के पहाड़ पर अभी तक विकास की कोई भी ठोस उम्मीद नहीं जगाई है, फिर भी लोगों को उम्मीद है की आने वाले सालों में उत्तराखंड एक बेहतर राज्य के रूप में उभरेगा।