हमारे समाज में आज भी मानसिक बिमारियों को तिरसकार से देखा जाता है। लेकिन अगर बच्चों और युवाओं में होने वाले डिप्रेशन के आंकड़ों पर गौर करें तो ये हैरान कर देते हैं। अधिक्तर माता पिता के लिये मानना बेहद मुशकिल होता है कि उनके बच्चे को मानसिक बीमारी है। वो इस तरह के हालातो पर हंसते हैं और कहते हैं कि ये सब उम्र के साथ खुद ब खुद ठीक हो जाता है। पर क्या सच में ये सोच सही है? कया सच में बढ़ती उम्र के साथ साथ डिप्रेशन के लक्ष्ण खुद ब खुद कम हो जाते हैं? क्या समय रहते बच्चों में डिप्रेशन के लक्ष्णों की पहचान और इलाज ज़रूरी नही है?
आखिर कया कहते हैं बच्चों में डिप्रेशन के आंकड़े?
डिप्रेशन किस तरह हमारी सेहत के लिये खतरनाक है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारी युवा पीढ़ी में करीब 1 प्रतिशत इसका शिकार हैं। युवाओं में आत्महत्या की प्रवृति को भी डिप्रेशन बढ़ावा देता है। आंकड़े बताते हैं कि डिप्रेशन के शिकार लोगों में से 15 प्रतिशत आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। पिछले कुछ दशकों में युवाओं में आत्महत्या की दर कई गुना बढ़ गई है। ये चौकाने वाले आंकड़े इस ओर साफ इशारा करते हैं कि डिप्रेशन के लक्ष्णों की पहचान और उनका सही तरह से इलाज कितना ज़रूरी हो गया है।
बच्चों और युवाओं में डिप्रेशन की शुरूआत
बच्चों में डिप्रेशन की पहचान माता पिता आसानी से कर सकते हैं अगर वो अपने बच्चों के बरताव में इन बातों का ध्यान रखें।:
- बच्चा अगर लगातार उदास रहता है
- उसका कुछ भी काम करने में मन नहीं लगता
- उसे जो काम पहले पसंद थे अब वो उनमे रुचि नही लेता
- पढ़ाई में मन न लगना और ध्यान न दे पाना
- खेलने और दोस्तों में रुचि कम होना
- ज्यादातर समय चिढ़चिढ़ा रहना
- लड़ाई झगड़ों में पड़ते रहना
- काम करने में आलस दिखाना
- आसानी से थक जाना
- भूख और नींद के पैटर्न में बदलाव
- अपने बारे में बेचारेपन का एहसास करना
- अपने को नुकसान पहुंचाने की बाते करना
यदी इनमें से कोई भी लक्ष्ण दो हफ्ते से ज्यादा दिखे तो ये डिप्रेशन की तरफ इशारा करता है। इन लक्ष्णों की जानकारी जरूरी है ताकि डिप्रेशन को शुरू में ही पहचान लिया जाये और उसका इलाज किया जा सके। किसी भी अन्य बीमारी की तरह डिप्रेशन का इलाज जितनी देर से होगा उतने ही उसके लक्ष्णों की तीव्रता बढ़ती जायेगी।
अगर आपके बच्चे में डिप्रेशन के लक्ष्ण हैं तो क्या करें?
अगर आपके बच्चे में डिप्रेशन के लक्ष्ण दिखे तो उसे नज़रअंदाज न करें। जल्द से जल्द हालात पर काबू इन छोटी छोटी बातों का पालन करके करें:
- अपने बच्चे पर और बेहतर परफॉर्म करने का दबाव न डालें। इससे बच्चे में तनाव और अपने प्रति हीन भावना पैदा होगी। इसके बदले अपने बच्चे का साथ दे और हौंसला बढ़ाये। अगर कोई बच्चों से अन्यथा सवाल करें तो बच्चों का बचाव करें।
- अपने बच्चों की बातों को पूरे ध्यान से सुने। आपकी की ही तरह बच्चे भी इस तरह की बीमारी से अंजान हैं और अपने अंदर हो रहे बदलावों को समझ नहीं पाते हैं। ये उनके लिये काफी परेशान करने वाली बात हो सकती है जो आने वाले समय में और तनाव को जन्म देती है।
- अपने बच्चों को ज्यादा बेहतर परफॉर्म कराने के लिये उनकी तुलना और बच्चों से कभी न करें। ऐसा करने से बच्चों में और ज्यादा नकरात्मक भावना घर करने लगती है।
- ध्यान रखे कि आपका बच्चा अपने को नुकसान पहुंचाने के बारे में बात न कर रहा हो। ऐसा होने पर बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताये जिससे बच्चे अपनी मन की बात आप से कर सकेँ।
- डिप्रेशन के इलाज के लिये डॉक्टर की मदद लेने से न हिचकिचाये। सही इलाज से आपके बच्चे के इलाज में तेज़ी आयेगी। इसके लिये मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक की मदद से आप अपने बच्चे के लिये इस लड़ाई को आसान बना सकते हैं।
डिप्रेशन का इलाज दवाईयों और काउंसलिंग के ज़रिये आसानी से किया जा सकता है। पर ज़रूरत है कि हम अभिभावकों के तौर पर इसे पहचाने और स्वीकार करें कि ये किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी की ही तरह है और इसे शर्म और तिरस्कार से न जोड़ें।
(डॉ कामना छिब्बर एक मनोचिकित्सक हैं और फोरटिस हेल्थकेयर के मनोरोग विभाग की निदेशक हैं। डॉ छिब्बर पिछले दस सालों से मनोरोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इनसे संपर्क करने के लिये [email protected] पर लिखें )