मलिन बस्ती वासियों में फैले भ्रम को कैसे दूर करेगी भाजपा

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देहरादून,  उत्तराखंड की मलिन बस्तियां राजनीतिक दलों के लिए उर्वरक साबित हो रही है। रिस्पना और बिन्दाल नदियों के किनारे बसी मलिन बस्तियों में लाखों लोग रह रहे हैं, जो चुनावी दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड में यूं तो हजारों मलिन बस्तियां हैं, लेकिन प्रदेश की करीब 584 मलिन बस्तियों को मान्यता दी गई है। इन क्षेत्रों में लगभग 12 लाख के लोग रहते है जो राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इन मलिन बस्तियों का निर्माण कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरेन्द्र मोहन उनियाल, संजय शर्मा, विवेकानंद खंडूरी, राजकुमार के कार्यकाल में हुआ था। आज नदियों का क्षेत्र संकरा होता गया है। रिस्पना और बिन्दाल के पुनजीर्वित करने के समाचारों से मलिन बस्ती वासियों में काफी हड़कंप है। उनको डर लगता है कि कहीं चुनाव की आड़ में उनको बेघर न कर दिया जाए। इस संदर्भ में प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार ने इन मलिन बस्ती वासियों को अभयदान दे दिया है। सरकार की ओर से स्पष्ट कहा है कि इन मलिन बस्ती वासियों को तभी हटाया जाएगा जब इनके लिए आवास का प्रबंध कर दिया जाएगा। लेकिन चुनाव आते ही आपाधापी शुरू हो जाती है।

इस संदर्भ में भाजपा प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि, “भाजपा ने कभी भी गरीबों की उपेक्षा नहीं की। हमेशा साथ ही दिया है। वीरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि नदियों को पुनर्जीवित करना है तो डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों का विस्थापन करना ही पड़ेगा।” उन्होंने कहा कि वह डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों को आश्वासन देते हैं कि उनके लिए डरने की कोई बात नहीं है। बीजेपी सरकार उनके लिए कोई व्यवस्था करेगी तभी उन्हें हटाया जाएगा। वैसे भी देहरादून में ही रिस्पना, बिंदाल नदियों के किनारे करीब 2 लाख से अधिक मतदाता रहते हैं जो हारजीत में काफी महत्वपूर्ण होते हैं।

एक बार फिर कांग्रेस की ओर से आशियाना मिटाने की साजिश का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है ताकि यह मलिन बस्तीवासी भाजपा से अलग हट जाएं और उनको नाराज कर दिया जाए। यह मुद्दा इन दिनों चर्चाओं में है। यह देखना होगा कि सत्तारूढ़ दल इस मुद्दे को किस ढंग से सुलझाता है और इस दुष्प्रचार का कितना प्रभावकारी जवाब देता है।