आठ महीने बाद भी राज्य में पनबिजली परियोजनाएं ठप

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जमरानी
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(देहरादून) केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। आलम यह है कि उत्तराखंड के ‘डबल इंजन’ से जुड़ने के आठ महीने बाद भी पनबिजली परियोजनाओं की ‘गाड़ी’ चलने का नाम नहीं ले रही है। तीन दर्जन से ज्यादा परियोजनाएं पर्यावरणीय समेत कई कारणों से अटकी पड़ी हैं।
दरअसल, गठन के वक्त प्रचुर जल संपदा के बूते उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने की बातें हुई थी, लेकिन मौजूदा स्थिति में जरूरतभर की बिजली जुटाने के लिए दूसरों का मुंह ताकना पड़ता है। क्योंकि राज्य बनने के बाद से आज तक एक भी नई पनबिजली परियोजना शुरू नहीं हुई। ईको सेंसटिव जोन में 15 परियोजना फंसी हैं तो दूसरी ओर 2013 की आपदा के बाद 24 परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगा दी गई। यमुना घाटी में प्रस्तावित 300 मेगावाट की लखवाड़ बहुद्देश्यीय परियोजना का निर्माण भी केंद्र सरकार से वित्त की मंजूरी नहीं मिलने के कारण शुरू नहीं हुआ। टौंस नदी पर प्रस्तावित किसाऊ परियोजना (660 मेगावाट) निर्माण के लिए भी अभी तक केंद्र से पैसा नहीं मिला है।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम के प्रबंध निदेशक एसएन वर्मा का कहना है कि परियोजनाओं के निर्माण में फंसे पेंच को निकालने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उम्मीद तो हैं कि जल्द सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। वहीं नीति आयोग के समक्ष सभी मुद्दों को पूर्व में रखा गया था। भरोसा मिला है कि भारत सरकार से बात कर सभी मसलों का हल निकाला जाएगा।
दस छोटी परियोजनाओं पर भी निर्णय नहीं
भागीरथी ईको सेंसटिव जोन में फंसी 68 मेगावाट की 10 छोटी पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी मिलने की उम्मीद परवान चढ़ी थी। क्योंकि, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक्सपर्ट कमेटी ने सशर्त अनुमति पर विचार की बात कही थी, लेकिन केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय का तर्क है कि परियोजनाओं से पर्यावरण को नुकसान होगा। वहीं, आपदा के बाद 24 परियोजनाओं में से सार्वजनिक उपक्रम की पांच बिजली परियोजनाओं से रोक हटने की उम्मीद भी जल संसाधन मंत्रालय के विरोध के चलते परवान नहीं चढ़ी। बता दें कि करीब दो साल पहले विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था, जिसमें पांच परियोजनाओं के लिए वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त उपाय और आपात प्रबंधन योजना की शर्त जोड़ी गई थी। इन परियोजनाओं के शुरू होने से रॉयल्टी के रूप में उत्तराखंड को 102.50 मेगावाट बिजली मिलेगी।