हाइड्रो सीडिंग सिस्टम से होगा बद्रीनाथ भूस्खलन का ट्रीटमेंट

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बद्रीनाथ हाईवे के भूस्खलन वाले स्थानों का ट्रीटमेंट अब हाइड्रो सीडिंग सिस्टम से किया जाएगा। ट्रायल के तौर पर बद्रीनाथ हाईवे पर मैठाणा भूस्खलन जोन में इस सिस्टम से ट्रीटमेंट कार्य शुरु भी कर दिया गया है। हाईवे के अन्य भूस्खलन क्षेत्रों में भी हाइड्रो सीडिंग सिस्टम से भूस्खलन की रोकथाम की जाएगी।

बद्रीनाथ हाईवे पर 21 ऐसे भूस्खलन व हैं जो बारिश में एनएच तथा बीआरओ के लिए सिर दर्द बन जाता है। आय दिन इन स्थानों पर मार्ग अवरुद्ध हो जाना एक सामान्य सी प्रक्रिया हो गई है। मैठाणा में वर्ष 2013 की आपदा के बाद से लगातार भूस्खलन हो रहा है। यहां करीब साढ़े तीन सौ मीटर तक हाईवे दस मीटर तक धंस गया है।

वहीं, वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने भूस्खलन क्षेत्रों के ट्रीटमेंट का कार्य सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से हटाकर लोक निर्माण विभाग (एनएच) को दे दिया था। बीते मई माह को एनएच की ओर से भूस्खलन का ट्रीटमेंट कार्य इटली की मेगा-फेरी कंपनी को दिया गया। कंपनी के इंजीनियरों द्वारा भूस्खलन क्षेत्र में वायो इंजीनियरिंग सिस्टम के तहत हिल साइड करीब दो मीटर तक क्रेटवाल (जाली वाली दीवार) लगाई जा रही है। साथ ही भूस्खलन से कमजोर पड़ी पहाड़ी पर हाइड्रो सीडिंग सिस्टम के जरिए हरी घास और विभिन्न प्रजाति के पौधों के बीजों का रोपण किया जा रहा है।

परिवहन मंत्रालय देहरादून के इंजीनियर रजत पांडे ने बताया कि हाइड्रो सीडिंग सिस्टम के तहत पहाड़ी पर ऐसी प्रजाति के पौधों का बीज बोया जाता है, जिनकी जड़ें लंबी होती हैं। इससे मिट्टी नीचे की ओर नही खिसकती है।

क्या है हाइड्रो सीडिंग सिस्टम
केमिकल के साथ स्थानीय प्रजाति के पौधों के बीज, खाद, फर्टिलाइजर, बूसा और हरी घास मिला कर एक मशीन में डाले जाते हैं। बाद में इस मिश्रण को स्प्रे से कमजोर पहाड़ी पर डाला जाता है। करीब एक सप्ताह के भीतर तेजी से पौधे और हरी घास उगनी शुरु हो जाती है। इससे एक माह के भीतर पहाड़ी पर हरियाली आ जाती है। इसके बाद मिट्टी से भूस्खलन थम जाता है। साथ ही बारिश का पानी भूमिगत होने के बजाय सीधे नीचे की ओर बहना शुरु हो जाता है।