आईआईटी ने तैयार की इको-फ्रेंडली शवदाह भट्ठी

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रोपड़ ने इको-फ्रेंडली मोबाइल शवदाह भट्ठी तैयार की है। इसमें लकड़ी का इस्तेमाल करने के बावजूद धुआं नहीं होता है। इससे ऊर्जा की भी बचत होती है क्योंकि सामान्य तौर पर शवदाह में जरूरी लकड़ी की आधी मात्रा का ही इस्तेमाल होता है।

औद्योगिक परामर्श एवं प्रायोजित अनुसंधान एवं उद्योग सहभागिता (आईसीएसआरएंडआईआई) के डीन आईआईटी प्रोफेसर डॉ. हरप्रीत सिंह ने इस प्रणाली को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि यह शवदाह भट्ठी 1044 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर काम करती है। यह बत्ती-स्टोव प्रौद्योगिकी पर आधारित है। इसमें जब बत्ती जलती है तो पीली लपटें चमकती हैं लेकिन बत्तियों के ऊपर लगे दहन वायु प्रणाली की मदद से यह धुआं रहित नीली लौ में बदल जाती है।

ठेले के आकार की भट्ठी में पहिये लगे होते हैं और बिना अधिक प्रयासों से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह ठेला प्राथमिक और माध्यमिक गर्म हवा प्रणाली के लिए दहन वायु से युक्त है। ठेले के दोनों ओर स्टेनलेस स्टील का ढांचा लगा होता है इससे ऊर्जा का नुकसान कम होता है और लकड़ी की भी खपत का होती है। इसके अलावा राख को आसानी से हटाने के लिए इसके नीचे एक ट्रे भी लगा हुआ है।

प्रोफेसर हरप्रीत ने आगे कहा, “सामान्य लकड़ी आधारित शवदाह के लिए जरूरी 48 घंटे की तुलना में इसमें 12 घंटे के भीतर शव का अंतिम संस्कार हो जाता है।” प्रोफेसर हरप्रीत ने बताया कि शवहाद के लिए टेक-ट्रेडिशनल मॉडल को अपनाया है, क्योंकि यह भी लकड़ी का उपयोग करता है।

इस मॉडल को बनाने वाले चीमा बॉयलर्स लिमिटेड के एमडी हरजिंदर सिंह चीमा ने कहा, “वर्तमान में महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर इस प्रणाली को अपनाया जाता है तो यह उन लोगों के करीबी एवं प्रियजनों के सम्मानजनक शवदाह प्रदान कर सकते हैं, जो लकड़ी की व्यवस्था करने का वित्तीय बोझ वहन नहीं कर सकते हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि चूंकि यह वहनीय है, इसलिए संबंधिक प्राधिकारियों की अनुमति से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। मौजूदा संदर्भ में जो मामले हैं, उसे देखते हुए इससे लोगों को श्मशान में जगह की कमी से बचने में भी मदद मिलेगी।