देहरादून, वन अनुसंधान संस्थान के विस्तार प्रभाग द्वारा किसानों, गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों एवं छात्रों को औषधीय पौधों एवं मशरूम की खेती एवं उपयोगिता बताई गई। 27 फरवरी से एक मार्च तक आयोजित होने वाले तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञ विषय से जुड़े मुद्दों पर तकनीकी जानकारी देंगे।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ बुधवार को एफआरआई के विस्तार प्रभाग प्रमुख डॉ. एके पाण्डेय ने किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि उत्तराखंड औषधीय पौधों के लिए जाना जाता है। यहां उगाए जाने वाले औषधीय पौधे जैसे, कुथ, कुटकी, जटामांसी, चिरायता व किल्मोड़ा आदि की भारी मांग है। इस मांग को पूरा करने के लिए किसानों को अपने खेतों में इन औषधीय पौधों की खेती करनी चाहिए। जिसके द्वारा वे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है। सरकार इन पौधों की खेती लिए लागत दर में रियायत भी प्रदान करती है। उन्होंने बताया कि मशरूम का उत्पादन कर भी किसान अपनी आमदनी बढ़ाकर अपनी जीविका में सुधार कर सकते हैं।
पिछले दो दशकों से मानव का रुझान पुनः प्राकृतिक जड़ी बूटियों की ओर बढ़ा है और वह अपने रोगों के निवारण के लिए अधिक से अधिक औषधीय पौधों का उपयोग करने लगा है। जिसके कारण औषधीय पौधों की मांग में गुणात्मक वृद्धि हुई है, जिसको केवल वनों से संग्रहित कर पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए आवश्यकता है कि इन जड़ी बूटियों की खेती की जाए। इन जड़ी बूटियों की खेती परंपरागत खेती की तुलना में अधिक लाभदायक है। औषधीय पौधों के साथ साथ खाद्य एवं औषधीय मशरूम की खेती का भी प्रचलन बढ़ा है।
किसान अपने खेत में औषधीय पौधों को उगाने के साथ ही मशरूम उत्पादन के लिए भी उद्यत रहते हैं। लेकिन, उचित वैज्ञानिक तकनीक के अभाव में वांछित उत्पादन प्राप्त नहीं कर पाते हैं, जिससे सही आमदनी नहीं हो पाती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
उपस्थित वन परिरक्षण प्रभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित पाण्डेय ने बताया कि खाद्य मशरूम के अलावा किसान संस्थान की तकनीक को अपनाकर औषधीय मशरूम ‘गेनोडर्मा लयूसिडम’ की खेती करके भी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। विस्तार प्रभाग के वैज्ञानिक डॉ. चरण सिंह ने प्रदर्शन ग्राम के उद्भव एवं भूमिका के बारे में प्रकाश डाला। इस अवसर पर बागवान, ग्रामोद्योग समिति की समन्वयक श्रीमती उमा खंडूरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अंत में वैज्ञानिक विस्तार प्रभाग रामबीर सिंह ने सभी का धन्यवाद किया।