सावन में क्यों किया जाता है शिव का अभिषेक

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महाशिवरात्रि

(हरिद्वार)। शनिवार से सावन का महीना शुरू हो गया है। सावन मास को भगवान शिव का माह माना जाता है। कहा जाता है ससुर को दिया वचन निभाने के लिए भगवान शिव शंकर कैलाश से श्रावण मास में कनखल आते हैं और पूरे एक माह तक यहां निवास करते हैं। भगवान शिव की ससुराल कनखल को ही माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, सावन के महीने में ब्रह्मपुत्र राजा दक्ष और सृष्टि नियंता भगवान शंकर के बीच भले ही जीवन भर साम्य न रहा हो, लेकिन भोले भंडारी राजा दक्ष को दिया वचन निभाने के लिए कैलाश से श्रावण लगते ही कनखल नगरी आते हैं। माना जाता है कि एक महीने तक वे दक्ष मंदिर में स्वयं शिवत्व त्यागकर दक्षेश्वर बन जाएंगे। दूसरी मान्यता है कि आदिकाल में समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला था, भगवान भोले नाथ कालकूट विष की ज्वाला को शांत करने के लिए कैलाश पर्वत छोड़ एकांत और शीतल स्थान की तलाश में निकल पड़े।
हिमालय में विचरण करते हुए महादेव मणिकूट पर्वत पर पहुंचे। यहां भगवान शिव ने मधुमति और पंकजा जलधाराओं के संगम पर अज्ञातवास में 60 हजार वर्ष तक समाधि की स्थिति में लीन होकर होकर विष की ज्वाला को शांत किया। बताया जाता है कि कालांतर में यही स्थान पौड़ी जनपद के यमकेश्वर विकासखंड में श्री नीलकंठ महादेव के नाम से विख्यात है। जिसका स्कंदपुराण, केदारखंड और शिवपुराण आदि धर्मग्रंथों में जिक्र मिलता है।
श्रावण मास में सोमवार के व्रत का खास महत्तव है। माना जाता है इससे जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। मान्यता है विवाहित औरतों को इस महीने में सोमवार व्रत रखने पर सौभाग्य वरदान मिलता है। इस महीने के पहले सोमवार से 16 सोमवार व्रत की शुरुआत भी की जाती है। सावन भगवान शिव की पूजा करने का सबसे उत्तम महीना माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि सावन भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता है। इसके पीछे की मान्यता है कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जीया। उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।
पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोर तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया है।