उत्तराखण्ड में मतदान के बाद अपने दम पर सरकार बनाने की तमाम अटकलों के बावजूद प्रदेश में सत्तासीन कांग्रेस और विपक्ष में बैठी भाजपा अन्य छोटों दलों को साधने में जुट गयी है।
देवभूमि में 15 फरवरी को 69 सीटों पर मतदान संपन्न होने के बाद से सरकार किसकी बनेगी इसे लेकर कयास लगाये जा रहे है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों को देखा जाए तो, 2002, 2007 और 2012 में बसपा, उक्रांद और निर्दलियों के समर्थन से सरकार बनायी गयी। ऐसी संभावना को देखते अंदरखाने दोनों राष्ट्रीय दल प्रदेश के अन्य छोटों पार्टियों को वैशाखी बनाने की योजना पर काम कर रहे है।
इस बार बड़ी संख्या में भाजपा कांग्रेस के बागियों द्वारा मैदान में किस्मत अजमाने से बहुमत की सरकार बनाने की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। इसे देखते हुए भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख नेता इस पर गंभीरता से विचार कर रहे है। उक्रांद का इससे पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन रह चुका है।
उत्तराखण्ड में मतदान के दिन आधा दर्जन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार दोनों दलों के प्रत्याशियों को कांटे की टक्कर देते दिखे। यह कितना सच साबित होगा यह 11 मार्च को पता चलेगा, लेकिन पार्टियां निर्दलियों को नजर अंदाज करने के मूड में नहीं है। हालांकि कांग्रेस गठबंधन के बारे में पहले ही संकेत भी दे चुकी है लेकिन भाजपा अन्य दलों और निर्दलियों के साथ सरकार बनाने की बात को तवज्जो नही दे रही है।
बागी निर्दलीय, नरेंद्रनगर से ओमगोपाल, केदारनाथ से आशा नौटियाल और कुलदीप कुमार, सहसपुर में आर्येंद्र शर्मा, गंगोत्री में सूरत राम नौटियाल, पुरोला में दुर्गेश लाल, यमकेश्वर में रेनू बिष्ट, धनौल्टी में प्रीतम पंवार, टिहरी में दिनेश धनै, देवप्रयाग में दिवाकर भट्ट, डीडीहाट से काशी सिंह ऐरी और द्वाराहाट से पुष्पेश त्रिपाठी भी परिणाम के दिन गुल खिला सकते है।