दिपावली, त्योहार से जुड़े रहस्यों के बारे में यहां पढ़ें

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(हरिद्वार) दिवाली यानी दीपों का त्योहार। खुशियों का त्योहार। असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय का त्योहार। इस दिन मां लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा की जाती है। दीपावली से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं।
सब जानते हैं कि त्रेतायुग में भगवान राम रावण का वध करने के बाद माता सीता के साथ 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे। इस दिन पूरी अयोध्या में घी के दीपक जलाकर भगवान राम और माता सीता के घर आने की खुशी में जश्न मनाया गया था, लेकिन प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रतीक मिश्र पुरी ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली का पर्व सदियों से चला आ रहा है।

ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार ग्रंथों में भगवान राम के आयोध्या आने से भी पहले दीपावली का वर्णन है। उनका कहना है कि दीपावली का त्योहार सतयुग से मनाया जा रहा है। इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं, क्योंकि भगवान विष्णु इस समय बाली को दिए वचन अनुसार पाताल लोक में विराजमान होते हैं और पूरी सृष्टि का संचालन माता लक्ष्मी के हाथों में होता है। लक्ष्मी के साथ भगवान विनायक की पूजा करने से लक्ष्मी के साथ जो व्यसन आता है, उससे मुक्ति मिलती है। लक्ष्मी के साथ व्यसन घर में प्रवेश नहीं करता। विनायक की पूजा से बुद्धि मिलती है। विनायक व्यक्ति के कल्याण के लिए विध्यमान रहते हैं।

दीपावली के मौके पर माता सीता को लक्ष्मी स्वरूप मानकर पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी को आराध्य मानते हुए पूजा अर्चना करने से धन-धान्य, ऐश्वर्य, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। बताया कि सातों लोक में लक्ष्मी की पूजा का अलग-अलग प्रावधान है। पृथ्वी लोक पर इसे षोडश चारक पूजा कहा जाता है। सबसे पहले लाल वस्त्र पहन कर महालक्ष्मी का आह्वान करें। माता लक्ष्मी और विनायक को एक साथ जल से स्नान कराएं। रोली चावल डोरी और लाल वस्त्र माता को अर्पण करें। पंचमेवे का भोग लगाएं। अनार का भोग लगाएं और माता के वस्त्रों को साफ करें। माता को कमल गट्टे की माला अर्पण करें। लक्ष्मी सहस्त्र मंत्र का उच्चारण करें। यही महालक्ष्मी की पूजा का विधान है।