केरल की तबाही के लिए बारिश से ज्यादा हम जिम्मेदार

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Rescuers evacuate people from a flooded area to a safer place in Aluva in the southern state of Kerala, India, August 18, 2018. REUTERS/Sivaram V

केरल बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा है। इस साल वहां सामान्य की तुलना में 300 फीसदी अधिक बारिश हुई है। भारी बारिश के कारण नदी-नाले लबालब हो गए, बांधों पर टूटने का खतरा मंडराने लगा। मजबूरन राज्य के27 बांधों के गेट खोलने पड़े और बांधों के पानी से पूरा राज्य जलमग्न हो गया। अभी तक भारी बारिश और बाढ़ की वजह से राज्य में लगभग साढ़े तीन सौ लोगों के मारे जाने की अधिकारिक तौर पर पुष्टि हो चुकी है। बाढ़ की विभीषिका अभी भी जारी है। पूरे राज्य में राहत और बचाव का काम चलाया जा रहा है, लेकिन वहां के जनजीवन को सामान्य होने में अभी काफी समय लगने वाला है।

कहा जा रहा है कि भारी बारिश की वजह से ही वहां बाढ़ की स्थिति विकराल हुई। लेकिन केरल की बाढ़ के लिए सिर्फ बारिश को ही जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। केरल में जिस तरह से नदी-नालों में उफान आया, वह कल्पना से परे बात है। भारी बारिश में भी नदी-नालों का पानी आमतौर पर बहकर निकल जाता है या नदी के किनारे तटवर्ती क्षेत्र (रिवर बेड) में फैल जाता है। यही कारण है कि पर्यावरणविद् लंबे समय से रिवर बेड पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य का विरोध करते रहे हैं। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में केरल समेत लगभग पूरे देश के बड़े शहरों में नदियों के रिवर बेड पर वैध या अवैध तरीके से कब्जा कर लिया गया है। नदी-नाले कूड़े से भर गए हैं। इनके गाद को निकालने की और उनका निपटान करने की कोई भी ठोस व्यवस्था नहीं है। और यही बात बाढ़ की एक बड़ी वजह बन रही है।

केरल की ही बात करें, तो वहां सबसे अधिक नुकसान उन्हीं जगहों पर हुआ है, जहां रिवर बेड पर लोगों ने नियमों को ताक पर रखकर कंस्ट्रक्शन कर लिया था। पिछले दो दशकों में केरल के अधिकांश शहरों में भू माफिया ने रिवर बेड पर कब्जा कर अवैध कॉलोनियां विकसित कर ली है। वहां अंधाधुंध अवैध निर्माण हुआ है। इन क्षेत्रों में ही भूस्खलन भी सबसे अधिक हुआ है। नदी के तटवर्ती क्षेत्र को इकोलॉजिकली सेंसिटिव जोन माना जाता है। इस क्षेत्र में बारिश के दौरान नदी का पानी फैल जाता है और बारिश कम होने के बाद पानी वापस नदी में चला जाता है। पानी के रिवर बेड पर फैल जाने की वजह से नदी की धारा की तीव्रता भी कम हो जाती है, जिससे अधिक नुकसान की संभावना नहीं रहती है। इसके साथ ही यह पानी कुछ दिन तक जमा रहने की वजह से रिसकर भूगर्भ में चला जाता है और भूगर्भीय जलस्तर को रिचार्ज करता है। भूगर्भीय जलस्तर गर्मी के दिनों में नलकूपों के जरिए सिंचाई के काम आता है।

माना जा रहा है कि केरल में यदि रिवर बेड का इतने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण नहीं हुआ होता, तो केरल में बाढ़ की स्थिति इतनी भयावह नहीं होती। पर्यावरणविदों का यह भी मानना है कि अवैध निर्माण की वजह से पानी के निकासी का मार्ग लगातार बाधित होता चला गया। साथ ही पानी के तटवर्ती क्षेत्र यानी रिवर बेड में फैल जाने की संभावनाएं भी घटती चली गई। जिसकी वजह से नदी की धारा भी तेज हुई और उसके कारण नदी के किनारे वाली जगहों पर कटाव भी काफी बढ़ गया, जिसके कारण भूस्खलन भी ज्यादा हुआ। देश में रिवर बेड के अतिक्रमण के खिलाफ कई कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन अधिकारियों, नेताओं और भू-माफियाओं की मिलीभगत की वजह से यह कानून कभी भी प्रभावी नहीं होते। अधिकारियों से मिलीभगत कर भू-माफिया रिवर बेड का अतिक्रमण करते हैं, फिर वहां अवैध तरीके से लोगों को बसा देते हैं। बाद में वोट की राजनीारण कभी भी रिवर बेड को अतिक्रमण मुक्त करा पाना प्रशासन के लिए संभव नहीं हो पाता है।

यह स्थिति सिर्फ केरल की ही नहीं है। दिल्ली में ही अगर यमुना और इसकी सहायक हिंडन नदी की स्थिति देखी जाए, तो स्पष्ट रूप से नजर आता है की नदियों के जलसंचयन क्षेत्र (रिवर बेड) में किस कदर अतिक्रमण हुआ है। दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हिंडन नदी अतिक्रमण के कारण से सिमटते-सिमटते एक नाले के रूप में तब्दील हो गई है। नदी की धारा कई जगह घरों की दीवार से सटकर बहती है। अगर कभी भी यहां अधिक बारिश हुई तो अतिक्रमित रिवर बेड में बने घरों में तो पानी भरेगा ही, नदी के किनारे बने मकान भी नदी की गोद में समा जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में बारिश असामान्य तरीके से होने लगी है। अधिक बारिश वाले जगहों पर सूखा पड़ने लगा है, तो कम बारिश वाले इलाकों में कई बार बाढ़ आने की घटनाएं होने लगी हैं। दिल्ली-एनसीआर को आमतौर पर कम बारिश वाला क्षेत्र माना जाता है। यही कारण है कि यहां यमुना नदी या हिंडन के रिवर बेड पर अतिक्रमण के बावजूद लोगों को बाढ़ का अमूमन सामना नहीं करना पड़ता है। लेकिन अगर जलवायु परिवर्तन के कारण कभी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में भी सामान्य से अधिक बारिश हो गई, तो यहां भी केरल जैसे जल प्रलय की स्थिति देखी जा सकती है। लगभग 10 साल पहले मुंबई में भी मीठी नदी के अतिक्रमण के कारण ही आधी मुंबई डूब गई थी। यही स्थिति गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों में भी देखी जा सकती है।

हमें समझना होगा कि यदि प्रकृति हमें बहुत कुछ देती है तो अपने साथ हुए छेड़छाड़ के लिए दंडित भी करती है। प्रकृति के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ करने के परिणाम हमेशा ही घातक होता है। इसलिए अभी भी समय है कि केंद्र और राज्य की तमाम सरकारें इस दिशा में विशेष रूप से ध्यान दें और रिवर बेड पर हुए अतिक्रमण को मुक्त कराने की कोशिश करें। अन्यथा जैसी विनाशलीला आज केरल में हुई है, वैसी प्रलयंकारी बाढ़ आने वाले दिनों में देश के किसी भी हिस्से में आ सकती है और जान माल का भारी नुकसान कर सकती है। केरल की बाढ़ एक बड़ी चेतावनी है और अगर समय रहते इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो उसका खामियाजा भी हमको ही भुगतना होगा।