उत्तराखंड वन विभाग ने कालाढुंगी रेंज में वन्यजीवों के लिए फ्लाईओवर का निर्माण कराया है। वन्यजीवों के लिए यह देश का पहला फ्लाईओवर है। यहां के रेंज अधिकारी अमित ग्वासीकोटी के मुताबिक इस पर मात्र दो लाख रुपये खर्च हुए हैं।
वह कहते हैं इसे पूरे देश में प्रसिद्धि मिल गई है। नैनीताल-कालाढुंगी राज्य मार्ग पर स्थित यह फ्लाईओवर 90 फीट लंबा और पांच फीट चौड़ा है। इसे मनुष्य के लिए नहीं सांप, छिपकली, चूहे जैसे जमीन पर रेंग कर चलने वाले रेप्टाइल यानी सरीसृप वर्ग के प्राणियों के लिए बनाया गया है। इसके पीछे भावना यह है कि यह निरीह वन्य जीव सड़क पार करते समय किसी वाहन की चपेट में आकर जान न गंवा बैठें।
हालांकि यह प्रयोग अजीब सा लगता है और जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि सड़क के दोनों ओर फैले इतने बड़े जंगल में वन्यजीव सड़क के आर-पार जाने के लिए क्या मानव की तरह इस पुल का इस्तेमाल करेंगे। नीचे सड़क की जगह कोई नदी होती तो भी शायद वे इसका इस्तेमाल करते। वैसे भी उन्हें यह पुल कोई जाल जैसा भी लग सकता है, जिससे गुजरने की बजाय वे इससे दूर रहने का प्रयास करें।
बावजूद इसके रेंज अधिकारी अमित को विश्वास है कि धीरे-धीरे वन्य जीवों की इसके प्रति समझ बनेगी और वे इससे गुजरेंगे। वे कहते हैं, यदि कुछ वन्य जीव भी इसकी वजह से जान गंवाने से बच गए तो यह इस पुल की सफलता होगी। वे बताते हैं कि धामण यानी रैट स्नैक तरीके के कई सरीसृप हैं जो चूहों को खाकर मानव के कृषि कार्य में सहयोगी हैं। इसी तरह किंग कोबरा जैसे कई सरीसृप ईको सिस्टम यानी पारिस्थितिकी और जैव विविधता के महत्वपूर्ण घटक हैं।
उन्होंने कहा है कि इस फ्लाईओवर में आगे जाल जैसे स्वरूप की जगह बिल्कुल जंगल की तरह घास, मिट्टी, पेड़ आदि फैलाए जाएंगे ताकि यह प्राकृतिक लगे। इसके दोनों ओर कैमरे भी लगाए गए हैं, ताकि इससे गुजरने वाले वन्यजीवों के बारे में जानकारी भी एकत्र की जा सके। इस फ्लाईओवर की परिकल्पना रामनगर के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी की है। इसकी सफलता पर फतेहपुर रेंज में भी इसी प्रकार के दो फ्लाईओवर बनाने की योजना है।
उधर, इस फ्लाईओवर की देखा-देखी उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के कतर्नियों में भी सेंचुरी कॉरीडोर के बीच इसी तरह का फ्लाईओवर बनाने को मंजूरी मिली है।