हाथों से सूती कपडे़ पर बादी तकनीक से बनाया जाने वाला डिजाइन भले ही गुजरात में लुप्त होने के कगार पर हो मगर उत्तराखंड के चमोली जिले में इस प्राचीन तकनीक को जीवित करने के प्रयास बाल भवन गोपेश्वर के बच्चे कर रहे हैं। बाल भवन में बच्चों को हर रविवार को फोटोग्राफी, पेंटिंग के साथ ही बादी तकनीक का भी ज्ञान दिया जा रहा है।
बाल भवन गोपेश्वर में एक सौ बच्चों को न केवल बादी तकनीक से वस्त्रों पर डिजाइन करने का कार्य सिखाया जा रहा है, बल्कि बच्चों से उनके अभिभावकों व समाज के अन्य लोगों को भी इस तकनीक के प्रति प्रेरित करने का कार्य किया जा रहा है। कभी गुजरात के सूरत समेत अन्य नगरों में बादी तकनीक से वस्त्रों के डिजाइन के कई उद्योग संचालित होते थे। सूरत की बादी डिजाइन के कपड़ों की मांग विदेशों में भी थी। लेकिन वहां यह कला लुप्त होती जा रही है। उत्तराखंड के चमोली जिले में इस कला को पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
बाल भवन के निदेशक विनोद रावत का कहना है कि “बच्चों को इस तकनीक का ज्ञान इसलिए दिया जा रहा है ताकि वह भविष्य में इस तकनीक से वस्त्रों पर डिजाइन कर स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ा सकें। बाल भवन की ओर से 2014 में गुजरात के जूनागढ़ में भ्रमण के दौरान वहां यह तकनीक देखी। पता चला की वस्त्र डिजाइन की यह तकनीक विलुप्त हो रही है। लिहाजा बच्चों के माध्यम से इस तकनीक का प्रचार प्रसार कर इसे पुर्नजीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।”
कार्यक्रम में संरक्षक फकीर सिह रावत, अरुणा व कुलदीप बिष्ट ने इस तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि “बादी कपड़ों को बांधकर डिजाइन की एक जटिल प्रकिया है असल में सूती कपड़ों को हाथ से ही धागे से जगह बांधकर कपड़े को पहले अलग-अलग रंगों में डुबोया जाता है। उसके बाद धागे को खोलकर कपड़े को सुखाया जाता है इस प्रकिया में अलग-अलग डिजाइन बन जाते हैं। इस तरह से बादी डिजाइन बनाई जाती हे।”