देहरादून, बुझे कारतूसों के बल पर एक बार फिर पूर्व पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय उत्तराखण्ड वासियों को वनाधिकार दिलाने के लिए अब आर पार की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। उनका मानना है कि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकार नहीं चाहती है कि राज्य के लाखों लोगों को वनाधिकार मिले। किशोर उपाध्याय लंबे अर्से से वन वासियों की लड़ाई लड़ने का दावा का रहे हैं, अब उन्होंने वामपंथी सहयोगियों को भी इसमें जोड़ा है।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा 2017 से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे वन अधिकार कानून के मामले में याचिका कर्ताओं के झूठ के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठायी। जिसके कारण न्यायालय ने 13 फरवरी 2019 को लाखों परिवारों को बेदखल करने का फैसला सुना दिया। इस श्रेणी में उत्तराखण्ड के भी सैकड़ों परिवार शामिल हैं, इन पर अब तक बेघर होने की तलवार लटकी हुई है। 12 सितम्बर को इस मामले में फिर सुनवाई शुरू हुई लेकिन सरकार गैरहाजिर रही अब इस पर 26 नवम्बर को सुनवाई होनी है।
उपाध्याय ने कहा कि केन्द्र सरकार वन विभाग को वन रक्षा के नाम पर गोली चलाने का अधिकार, बिना वांरट गिरफ्तारी व छापेमारी का अधिकार देना चाहती थी लेकिन देशभर से इसके खिलाफ आवाज उठने से केन्द्र सरकार ने अभी 15 नवम्बर को इस प्रस्ताव को वापस ले लिया। छह महीनों से इस प्रस्ताव को जारी रखने के बजाय सरकार को लोगों के वनाधिकारों को मान्यता देनी चाहिए थी। इस अवसर पर उनके समर भंडारी तथा अन्य वामपंथी नेता भी उपस्थित थे।