गंगा घाटी में मेहमान परिंदों का कुंभ, तिब्बत के सुर्खाब आकर्षण का केंद्र

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शरद ऋतु में जैविक घड़ी और ऋतु परिवर्तन के कारण हजारों पक्षी उत्तरी देशों से भारत भूमि में पदार्पण करते हैं और वसंत ऋतु में वापस स्वदेश लौट जाते हैं। गंगा घाटी में इस समय विदेशी परिंदों का कुंभ नजर आ रहा है। इनमें तिब्बत के सुर्खाब पक्षी भी शामिल हैं।
गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक और जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट ने बताया कि गंगा घाटी हरिद्वार (भीमगोडा वैराज, मिश्रपुर गंगा घाट, राजाजी नेशनल पार्क आदि) आजकल विदेशी पक्षियों के कलरव से गुंजायमान हैं। लगभग 27 प्रजातियां दूर देश से और 30 प्रजातियां हिमालयी क्षेत्रों से शीत प्रवास पर आ चुकी हैं। मस्तिक के हाइपोथेलेमस में लगी जैविक घड़ी इनको प्रवास के लिए आन्तरिक प्रेरणा देती है।
प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट की लैब की रिपोर्ट के अनुसार इनमें विलुप्त होने के कगार पर खड़ी आठ प्रजातियां लाश फिस ईगल, ओरियेन्टल डार्टर, रिवर लैपविंग, ब्लैक नैक्ड स्टोर्क, पेन्टेड स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, इन्डियन रिवर टर्न, ब्लैक हैडेड आइविस शामिल हैं।
शोध छात्रा पारूल और रेखा ने बताया कि ब्लैक वैलिड टर्न, ब्लैक स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, नार्दन लैपविंग, येलो विर्टन कई वर्षों के बाद गंगा घाटी में दिखे हैं। प्रो. भट्ट के लैब में शोधार्थी पारूल एवं आशीष के अनुसार ब्लैक वैलिड टर्न तो प्रथम बार हरिद्वार क्षेत्र में रिपोर्ट हुई है। पक्षी वैज्ञानिक डाॅ. विनय सेठी ने बताया कि भारतीय उप महाद्वीप में सायबेरिया, मंगोलिया एवं चीन से आते-जाते ये जलीय पक्षी 2-4 स्थलों पर रुककर खाद्य रूपी ईंधन भरते हैं और फिर कई दिन बिना खाये-पिये लगातार यात्रा करते हैं। इनकी चोंच पर मैग्नेटिक सेंसर लगा रहता है, जिसका हाल ही के अध्ययन में पता लगा। इससे पक्षी दिशा बोध कर पाता है। भारत में आने वाले पक्षीयों का एक विशेष मार्ग है। इसे सेंट्रल फ्लाई वे कहते हैं। उसी हवाई मार्ग को पार करते हुए पक्षी पहुंचते हैं।