कुशोत्पाटिनी अमावस्या नौ को

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हरकी पैड़ी

हरिद्वार, पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध व तर्पण आदि में अमावस्या का खासा महत्व होता है। अमावस्या को पितृ कर्म के लिए श्रेष्ठ बताया गया है। यूं तो प्रति माह एक अमावस्या होती है किन्तु भद्रपद में पड़ने वाली अमावस्या का महत्व कुछ खास ही है। भाद्रपद में पड़ने वाली अमावस्या को ‘कुशोत्पाटिनी अमावस्या’ भी कहा जाता है। इस बार भाद्रपद कृष्ण अमावस्या नो सितम्बर को है। इस अमावस्या को ही कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन कुशा को संग्रह करने का विधान है। सनातन शास्त्रों में कहा गया है कि कुशा के बिना पूजा अधूरी रहती है। पूजा के समय अनामिका उंगली में कुशा की बनी पवित्री पहनने का विधान है। पितृ कार्य में यह अधिक महत्वपूर्ण होती है।

पं. देवेन्द्र शुक्ला शास्त्री के अनुसार पूजा कार्य तो एक बार बिना कुशा के किए जा सकते हैं, किन्तु पितृ कार्य में कुशा का होना अनिवार्य है। पूरे वर्ष की पूजा आदि के लिए इसी दिन कुशा को एकत्र किया जाता है। कुश दस प्रकार के होते हैं, जो मिले उसी को ग्रहण करना चाहिए। माना गया है कि जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, सात पत्ती हो, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव और पितृ दोनों कार्यां में उपयोग करने वाला होता है। जहां कुशा उपलब्ध हो, वहां पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए और विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज। नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥ हूं फट्। मंत्र का उच्चारण करते हुए कुशा को उखाड़ना चाहिए। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ स्नान, जप और व्रत आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है।

पं. शुक्ला ने बताया कि ग्रहण आदि काल में खाद्य पदार्थों में तुलसी पत्र या कुशा डालने का विधान है, जिससे वह अपवित्र नहीं होते। कुशा को पवित्र बताया गया है। यह सबकोे पवित्र करने का कार्य भी करती है, किन्तु सभी को पवित्र करने का कार्य करने वाली कुशा पिण्ड के नीचे आने पर स्वंय अपवित्र हो जाती है, इसलिए पिण्ड के नीचे आने वाली कुशा को नदी या पोखर में प्रवाहित से पूर्व अग्नि का स्पर्श अवश्य करा देना चाहिए। उन्होंने बताया कि नदी या पोखर में अपवित्र वस्तुएं डालना निषेध बताया गया है। अग्नि के स्पर्श में आने से कुशा की अपवित्रता समाप्त हो जाती है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन जितनी आवश्यकता हो उतनी ही कुशा को उखाड़ना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्नान, श्राद्ध तर्पण व दान करना श्रेयस्कर होता है।