लखवार बांध पर सहमति यानी आत्मनिर्भरता की ठोस पहल : सियाराम पांडेय ‘शांत’

0
849

विकास का श्रेय जिस तरह निरंतर नरेंद्र मोदी की सरकार ले रही है, उससे विपक्ष का तिलमिलाना स्वाभाविक है। लखवार बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना के समझौता पत्र पर छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के हस्ताक्षर नरेंद्र मोदी और नितिन गडकरी की बड़ी उपलब्धि है। इससे देश को बिजली -पानी के मामले में आत्मनिर्भर होने का बड़ा मौका मिलेगा।

यह सच है कि विकास के लिए नदियों पर बांध जरूरी हैं लेकिन नदियों के उन्मुक्त प्रवाह में बांध बाधक भी है। गर्मी के दिनों में जिन बड़ी नदियों पर बांध बने हैं, वे अमूमन सूख जाती हैं, इसका भी ध्यान रखना जरूरी है। एक ओर तो सरकार नदी परिवहन पर जोर दे रही है लेकिन जब नदियों में पानी नहीं होगा तो जहाज कहां चलेंगे? बांध बनाना और जल परिवहन दो विरोधाभासी चीजें हैं। इनमें फर्क तो करना ही होगा।

सुकूनदेह खबर यह है कि छह राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश , हरियाणा और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों ने जल संकट से निपटने के लिए लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना के निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर दस्तखत कर दिए हैं। 204 मीटर ऊंची इस परियोजना का निर्माण उत्तराखंडारी गांव के पास होगा जिसकी भंडारण क्षमता होगी 330.66 मिलियन क्यूबिक मीटर।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की मानें तो यह समझौता यमुना के मानसून प्रवाहों का संरक्षण तो करेगा ही, यमुना जल के उपयोग का एक बेहतर प्रयास भी साबित होगा। 3,966.51 करोड़ रुपये की इस परियोजना को 90 प्रतिशत केंद्र द्बारा वित्त पोषित किया जाएगा, जबकि शेष राशि छह राज्य मिलकर खर्च करेंगे। जल भंडारण से 33,780 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी और छह बेसिन राज्यों में घरेलू पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिए 78.83 एमसीएम पानी मुहैया कराया जाएगा। परियोजना से 300 मेगावाट बिजली भी पैदा होगी। बिजली पर पूरा अधिकार उत्तराखंड का होगा क्योंकि इस पर आने वाले 1400 करोड़ रुपये का व्यय वह खुद वहन करेगा जबकि पानी छह राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के बीच बांटा जाएगा।

लखवार बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना चार दशक पुरानी है और अब इसके अच्छे दिन आए हैं। योजना आयोग ने इस परियोजना को मंजूरी 1976 में दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिली। 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया। 1992 में 35 फीसदी काम पूरा हो जाने पर जेपी समूह पैसा न मिलने का आरोप लगाकर परियोजना से अलग हो गया था। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। राज्यों के बीच सहमति नहीं बनने के कारण कई दशकों तक छह राज्यों को यमुना के जल से वंचित रहना पड़ा। नई केंद्र सरकार का जोर गंगा सहित उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ रखने का है और इसमें यमुना अहम है। यमुना को लेकर दिल्ली में 12 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना के अलावा ऊपरी यमुना क्षेत्र में किसाऊ और रेणुकाजी परियोजनाओं का निर्माण भी होना है। किसाऊ परियोजना के तहत यमुना की सहायक नदी टौंस पर देहरादून जिले में 236 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाना है जबकि रेणुकाजी परियोजना के तहत यमुना की सहायक नदी गिरि पर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में 148 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण होना है। विकासवादी इसे चाहे जिस रूप में देखें लेकिन पर्यावरणविद ऊंचे बांधों के निर्माण को गंगा की तरह ही यमुना की बर्बादी के तौर पर देख रहे हैं। दिल्ली में यमुना के नाले में तब्दील करने के बाद गंगा पर टिहरी बांध से 300 क्यूसेक पानी का दोहन हो रहा है। अब यमुना की ऊपरी स्वच्छ धारा को भी समाप्त करना आखिर कहां तक उचित है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय ऊपरी यमुना घाटी में 6 कार्यरत, एक निर्माणाधीन और 19 जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित थीं। इस लिहाज से देखें तो यमुना को भी बांधने की मुकम्मल तैयारी है।

इस प्रस्तावित परियोजना में 50 गांवों की 1385.5 हेक्टेयर भूमि डूबेगी और 868.08 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल होगा। ये परियोजना यमुनोत्री से मात्र 130 किलोमीटर नीचे है और राज्य की राजधानी देहरादून के बहुत निकट है। यह उत्तराखंड के उसी गढ़वाल क्षेत्र में आता है, जहां टिहरी बांध से विस्थापित आज भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्वास की लड़ाई लड़ रहे हैं। पूरी भागीरथी गंगा के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय या भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण भी सहेजने में विफल रहा है। वह यमुना के स्वास्थ्य को कैसे दुरूस्त रख पायेगा, चिंतन तो इस पर भी होना चाहिए।

हर राजनीतिक दलों और सरकारों ने घोषणा की है कि अब टिहरी जैसा बड़ा बांध नहीं बनाया जाएगा, लेकिन इसके बाद भी गंगा घाटी में लगभग 60 बांधों की श्रृंखला को रन द रिवर कह कर आगे बढ़ाया जा रहा है। हर बार हर बांध के लिए अलग-अलग तर्क दिए जाते हैं। लखवार बांध परियोजना ब्यासी बांध परियोजना से जुड़ी है जिसमें 86 मीटर ऊंचा बांध होगा और 2.7 किलोमीटर लम्बी सुरंग के द्बारा भूमिगत विद्युतगृह में 120 मेगावाट बिजली पैदा करने की बात कही गई है। इसमें कट्टा पत्थर के पास 86 मीटर उंचा बैराज भी बनाया जाना है। ब्यासी परियोजना भी एक के बाद एक दूसरी बांध कंपनियों के हाथ में दी गई है कितु अभी तक यह तय नहीं है, वह कब तक पूरी होगी।

पंजाब सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) के जरिये पानी देने को तैयार नहीं हुआ तो हरियाणा सरकार को 24 साल से बंद लखवार डैम परियोजना याद आई थी। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने उत्तराखंड में लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना स्थल का दौरा किया था और तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से बात कर योजना के लिए फंड देने की गुजारिश की थी। हरियाणा को लखवार बांध से यमुना नदी का अतिरिक्त पानी मिलना प्रस्तावित है।

गंगा नदी पर निर्मित जल संसाधन परियोजनाओं में गंगा नहर तंत्र, यमुना नहर तंत्र, टिहरी बांध, लखवार बांध, तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना, रामगंगा बहुउद्देश्यीय परियोजना, रिहंद बांध, जमरानी बहुउद्देश्यीय परियोजना, राजघाट परियोजना, हलाली बांध, गांधीसागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, चंबल घाटी परियोजना, ओबरा बांध, रामसागर बांध, माताटीला बांध, पार्वती बांध इत्यादि प्रमुख हैं। बांध विकास की जरूरत हैं लेकिन इससे पहले पर्यावरणीय संतुलन का भी तो ख्याल रखा जाए।