नई टिहरी, कोरोना महामारी की मार से पहाड़ी उत्पादों की ब्रिकी भी अछूती नहीं रही। पहाड़ी फलों और फूलों से बने जूस, जैम, चटनी, अचार को इस बार खरीदार नहीं मिल रहा है। इस कारण इन उत्पादों जरिये अपनी आजीविका चलाने वाले लोग भी मायूस और परेशान हैं।
-जूस, जैम, और अचार को नहीं मिल रहे खरीदार
चंबा-मसूरी फल पट्टी के आसपास के कई गांव के लोग स्थानीय उत्पादों के सहारे अपनी आजीविका चलाते हैं। चंबा ब्लॉक के चंबा-मसूरी मोटरमार्ग पर जड़ीपानी कस्बे में प्रदीप रमोला माल्टा, सेब, आंवला, गुरियाल, आम, पुदीना व बुरांश के फूलों से जूस, जैम, चटनी, अचार, मुरब्बा, आंवाला कैड़ी आदि को बनाने और बेचने का काम करते हैं। उनके इस काम में उनके परिवार के सदस्यों के साथ कई और स्थानीय लोग भी जुड़े है। क्षेत्र के कई परिवारों की आजीविका भी इन्हीं स्थानीय उत्पादों पर निर्भर है।
प्रदीप ने बताया कि वह नवम्बर-दिसम्बर से जूस, जैम, चटनी, अचार आदि को बनाने का काम शुरू कर देते हैं। उनको इस धंधे से प्रति वर्ष अच्छी खासी कमाई हो जाती थी। इस साल कोरोना ने कमर तोड़ दी। जिन लोगों से कच्चा माल खरीदा उनकी देनदारी अभी तक बाकी है। उनके प्रोडक्ट देहरादून, ऋषिकेश, चंबा, नई टिहरी, मसूरी, धनोल्टी साहित जिले के अन्य कस्बों में सप्लाई होते थे। इस साल सब ठप है। तैयार माल की बिक्री न होने से इस वर्ष नुकसान होना तय है।
साल 1999 में प्रदीप के पिता ने रमोला फूड के नाम से स्थानीय उत्पाद जूस, जैम, चटनी, अचार, मुरब्बा आदि का कारोबार शुरू किया था। इन उत्पादों को तैयार करने के लिए उन्होंने मशीनें आदि लगा रखी हैं। प्रदीप बताते हैं पिछले 21 वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ था, जब उन पर जून माह तक इस सीजन की देनदारी बाकी है।