यहां के देवल गांव में जितेंद्र और किरन ने सिर्फ 6 लोगों की मौजूदगी में अग्नि के समक्ष सात फेरे लिये। इस दौरान न तो कोई वाद्ययंत्र बजाए गए और न ही कोई मंगल गीत गाए गए। दुल्हन को भी मात्र शादी के एक जोड़े में विदा किया गया। दूल्हा जितेंद्र भी तीन लोगों के साथ दुल्हन को लेने उनके गांव पहुंचा था। शादी के लिए स्वजनों ने प्रशासन से अनुमति ली थी। अनुमति पत्र के निर्देशों के आधार पर ही शादी संपन्न हुई।
– छह लोगों की मौजूदगी में लिये सात फेरे
– न ढोल, न मंगल गीत, कई रश्में नहीं हुईं पूरी
कोट विकासखंड के देवल गांव के रहने वाले चैतराम की बेटी किरन की सगाई ढामकेश्वर श्रीनगर के जितेंद्र के साथ हुई थी। सगाई के दिन ही शादी की तिथि 26 अप्रैल नियत की गई थी लेकिन इन दिनों लॉक डाउन के चलते शादी समारोह को लेकर जितेंद्र व किरन के स्वजनों में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। किरन के पिता चैतराम ने पौड़ी तहसील व जितेन्द्र के स्वजनों ने श्रीनगर तहसील से विवाह की अनुमति प्रशासन से ली। जितेंद्र को बरात में चार लोगों को ले जाने की अनुमति मिली थी। जितेंद्र रविवार को अपनी बारात लेकर किरन के घर पहुंचा। बारात में जितेंद्र के अलावा उसके पिता, मामा व मौसा शामिल थे। गाड़ी स्वयं जितेंद्र के मौसा ने चलाई।
देवल गांव पहुंचने पर बारात किरन के घर पहुंची तो आरती की थाली लेकर किरन की मां ने दुल्हे की आरती उतारी। बारात के स्वागत में न तो ढोल दमाऊ बजा न डीजे पर डांस हुआ। घर के भीतर ही पंडित ने मंत्र पढ़े व दूल्हा दुल्हन ने अग्नि के सात फेरे लेकर एक दूसरे को वरमाला पहनाई। दोपहर में जितेंद्र दुल्हन किरन को लेकर रवाना हो गया। इस शादी समारोह में लॉक डाउन के सामाजिक दूरी का पूरा ध्यान रखा गया। शादी में गांव के लोग भी शरीक नहीं हुए। दोनों की शादी में अग्नि के फेरे लेने के अलावा कोई अन्य रस्म नहीं निभ पाई। यहां तक दुल्हन को विदा करने के लिए उसका भाई भी साथ न जा पाया। प्रशासन की अनुमति न होने के कारण गाड़ी में कोई दूसरा नहीं बैठ सकता था। उधर, जितेंद्र के घर पर भी परिवार के अलावा बाहर से कोई भी रिश्तेदार शादी में शामिल होने नहीं आ पाया। उसने बताया कि लाक डाउन खुलने के बाद वे अपने गांव में शादी की दावत देंगे।
किरन के पिता को शगुन के तौर पर गागर नहीं दे पाने का मलाल
बेटी की विदाई में तांबे की गागर शुभ मानी जाती है। किसी भी शादी में बेटी को तांबे की गागर अवश्य दी जाती है। किरन के पिता चैतराम ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि वह शगुन के तौर पर एक गागर भी नहीं दे पाए। दुल्हन के हाथ में शगुन का लिफाफा रख कर ही कन्यादान किया गया। लॉक डाउन के चलते बाजार बंद होने से शादी के लिए खरीददारी नहीं हो पाई थी।