तो आ गया ”लोसर” यानि तिब्बती समुदाय का नया साल

0
2009

जिस तरह से भारतीय तिब्बती प्रवासी दुनिया भर में फैल रहे हैं,उसी तरह “लोसर” यानि तिब्बती नया साल दुनिया भर में एक अंर्तराष्ट्रीय त्यौहार बन चुका है। इस साल यह 27 फरवरी को मनाया जा रहा है। लोसर एक तिब्बतन शब्द है जिसका मतलब है नये साल की शुरुआत। “लओ” का मतलब साल और “सर” का मतलब नया। अगर हम इतिहास के पन्नें पलटें और इसके बारे में बात करें तो प्री-बुधिस्ट समय में तिब्बती बोन धर्म को मानते थे तब हर साल सर्दियों के समय में एक धार्मिक समारोह का आयोजन किया जाता था, जिसमें लोग धूप का प्रयोग करके स्थानीय आत्माओं, देवताओं और संरक्षकों को नए साल में लाने के लिए मनाते थे। आज ज्यादा कुछ नहीं बदला है, न्यू यार्क, यूएसए में रहने वाले स्वांग ल्हाट्सो और उनके तीन लोगों के परिवार के लिए लोसर आज भी वही महत्व रखता है जो तब था जब वह स्कूल में मसूरी में थी।उनके लिए घर का बदल जाना तब खलता है जब वह अपने समुदाय के लोगों के साथ अपने घर नए साल का जश्न नहीं मना पाती।

टेनली और उनका परिवार अब टोरोंटो में रहते हैं।कनाडा में मनाया जाने वाला लोसर एक ऐसा त्यौहार है जिसकी वजह से दूर दूर बसे तिब्बती समुदाय के लोग एक साथ आते है, क्योंकि वह सब एक साथ तिब्बती गुरु दलाई लामा के भाषण को सुनते हैं और आने वाले साल में उनके कही हुई बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। लोसर वैसे पूरे चांद के समय पहले महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन एक अलग तरह की पूजा अर्चना करने के बाद नए साल के उत्सव की तैयारी शुरु कर दी जाती है। लोसर के दिन की गई सजावट को बहुत ही बारीकियों और खूबसूरती से किया जाता है जिसे लामा लोसर कहते है।उसके बाद लोगों का मनोरंजन करने के लिए नृत्य प्रस्तुत किया जाता है जो आने वाले साल के लिए सभी को शुभकामनाएं देता है। इस दिन अलग अलग तरह की लाइटों से घरों को सजाया जाता है जिससे बुरी आत्माओं को घर से दूर किया जा सके। बलि चढ़ाने के लिए आटें से बनें जानवरों और दुष्ट आत्माओं का प्रयोग किया जाता है जिसको टोरमा कहते हैं।

मसूरी और देहरादून के लगभग सभी तिब्बती समुदाय के लोग,जवान से बुजुर्ग इस दिन अपनी पारंपरिक पोशाक में तैयार होकर एक दूसरे से मिलते और बधाईं देते हैं। बच्चे और औरते अपनी रंग बिरंगी पोशको में घरों से बाहर निकलकर उत्सव मनाते और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।

“जहां भी घर जैसा माहौल,शांति और समृद्धि हो,बस वही जगह है जहां वो अपना घर पा लेते है, मैं जहां भी जाता हूं मुझे मेरा तिब्बत मिल जाता है।” दलाई लामा के यह शब्द हर तिब्बत समुदाय के लिए सच है और हर कोई इनको मानता है। लगभग पूरा तिब्बती समुदाय चाहें जहां भी हो घर में या घर से दूर जब नया साल मनाता है तो ऐसा लगता है मानों उन्होंने अपने घर से दूर एक नया घर बसा लिया हो।