उत्‍तराखंड में अब निचली अदालत से भी मिल सकेगी अग्रिम जमानत

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हाईकोर्ट
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हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला देते हुए राज्य में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 प्रभावी कर दी है। इस आदेश के बाद राज्य की निचली अदालतों को भी अग्रिम जमानत देने का अधिकार मिल गया है। अभी तक मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपित को हाई कोर्ट से ही अंतरिम जमानत मिल पाती थी।

दरअसल, नोएडा निवासी व मूलरूप से किच्छा निवासी विष्णु सहाय व मोहन कुमार मित्तल ने हाई कोर्ट की एकलपीठ के दंड प्रक्रिया संहिता उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम-1976 के तहत दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14, 19, 21, 22 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 में समानता का अधिकार व 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदत्त है। उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या-16 द्वारा भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 को पुराना कानून मानते हुए निरस्त कर दिया गया था।

उक्त धारा के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट के तहत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किए गए नियम उत्तराखंड में दो साल तक ही प्रभावी हो सकते थे। जबकि उत्तराखंड सरकार द्वारा संशोधन एक्ट 1976 की धारा-नौ(पी) का प्रावधान उत्तराखंड में न तो निरस्त किया गया है और न ही लागू किया है

कोर्ट के समक्ष सरकार की ओर से सीएससी परेश त्रिपाठी द्वारा बताया गया कि राज्य सरकार के समक्ष यह मामला विचाराधीन है। इसमें वरिष्ठता के आधार पर तुरंत निर्णय लिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि मामला जनहित से संबंधित है और यूपी एक्ट-1976 की धारा नौ के तहत लोगों के व्यक्तिगत स्वाधीनता पर प्रभाव डालता है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने माना कि उत्तराखंड राज्य में उत्तर प्रदेश के बनाए उस कानून को प्रभावी नहीं किया गया है, लिहाजा राज्य में इसे लागू नहीं किया जा सकता।

इस आधार पर कोर्ट ने व्याख्या दी कि राज्य में अग्रिम जमानत के लिए दंड प्रक्रिया संहिता का प्रावधान उत्तराखंड में प्रभावी होगा। खंडपीठ ने विशेष अपील स्वीकार करते हुए एकलपीठ का आदेश निरस्त कर दिया। इस मामले में केंद्र सरकार के अधिवक्ता संजय भट्ट के अनुसार कोर्ट के फैसले के बाद अब जेल जाने से पहले जमानत मिल सकेगी।