राखी पर भद्रा के साथ चंद्रग्रहण का भी साया

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भाई-बहन के असीम स्नेह का पर्व रक्षा बंधन 7 अगस्त को है, लेकिन इस बार इस त्योहार पर भद्रा के साथ ही चंद्रग्रहण का साया भी रहेगा। करीब 12 साल बाद ऐसा संयोग बना है जब राखी के दिन ग्रहण लग रहा है। इसलिए इस बार राखी के दिन सूतक भी लगेगा। इसलिए सूतक लगने से पहले भद्रा का असर रहेगा।

रक्षा बंधन पर चंद्रग्रहण रात 10.53 बजे से शुरू होगा। ज्योतिषाचार्य पं. प्रदीप जोशी का कहना है कि चंद्रग्रहण से 9 घंटे पहले यानी दोपहर 1.53 बजे से सूतक लग जाएगा। सुबह 11.04 बजे तक भद्रा काल का असर रहेगा। चूंकि सूतक और भद्रा दोनों में ही शुभ कार्य वर्जित हैं, इसलिए इन दोनों के बीच का समय राखी बांधने के लिए शुभ है। सुबह 11.28 बजे से लेकर 1.29 मिनट तक आप रक्षा बंधन का त्योहार मना सकते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि सूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, यानी कि रावण का अहित हुआ। इस कारण लोग मना करते हैं कि भद्रा में राखी नहीं बांधनी चाहिए। राखी का त्योहार रक्षा बंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। आमतौर पर यह त्यौहार भाई-बहनों का माना जाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की दुआ करती हैं और भाई भी अपनी बहनों को सदा रक्षा करने का वचन देते हैं।

रक्षा बंधन का त्यौहार भाई-बहन मनाते हैं पर क्या आप जानते हैं कि यह त्यौहार भाई-बहन ने नहीं बल्कि पति पत्नी ने शुरू किया था और तभी संसार में रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा। पुराणों के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता दानवों से हारने लगे। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की हो रही हार से घबरा गईं और इंद्र के प्राणों की रक्षा के तप करना शुरू कर दिया, तप से उन्हें एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ। शचि ने इस रक्षा सूत्र को श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर जीत प्राप्त की।

पुराणों के अनुसार आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं, चाहें वह किसी भी रिश्ते में हो। रक्षाबंधन का त्यौहार बिना राखी के पूरा नहीं होता, लेकिन राखी तभी प्रभावशाली बनती है जब उसे मंत्रों के साथ रक्षा सूत्र बांधा जाए। यह मंत्र है-’येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे। मा चल! मा चल।’इस मंत्र का अर्थ है कि जिस प्रकार राजा बलि ने रक्षा सूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया। उसी प्रकार रक्षा हो।
वामन पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब राजा बलि से तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया था। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा। वरदान में बलि ने विष्णु भगवान को पाताल में उनके साथ निवास करने का आग्रह किया। भगवान विष्णु को वरदान के कारण पाताल में जाना पड़ा। इससे देवी लक्ष्मी बहुत दुखी हुईं। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को बलि से मुक्त करवाने के लिए एक दिन वृद्ध महिला का वेष बनाकर पाताल पहुंची और बलि को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया। बलि ने जब लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने बलि से भगवान विष्णु को पाताल से बैकुंठ भेजने के लिए कहा। बहन की बात रखने के लिए बलि ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ भेज दिया। भगवान विष्णु ने बलि को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे।

इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं। जिसे चातुर्मास कहा जाता है। यह मास संन्यासियों के लिए खास महत्व रखता है। भगवान विष्णु के पाताल में चले जाने के कारण त्रिलोक की सत्ता भगवान शिव के हाथों में रहती है।