हरिद्वार। एक जमाना था जब कांग्रेस में रहते हुए सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा की पार्टी में तूती बोलती थी। अपने चिर प्रतिद्वंदी हरीश रावत को राजनीति में पटखनी देने के लिए विजय बहुगुणा ने पार्टी से बगावत का रास्ता अख्तियार किया। कांग्रेस में जिनकी तूती बोलती थी आज उनकी जबान स्वंय उनकी ही पार्टी में दबी नजर आ रही है। जिन सतपाल महाराज व विजय बहुगुणा को पार्टी तवज्जो देती थी तथा जिनके नाराज होने पर पार्टी में खलबली मच जाया करती थी। आज वही अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आलम यह था कि चुनावी समर में विधानसभा व लोकसभा के टिकट भी इनकी राय मश्वरा के बिना फाइनल नहीं होते थे।
राज्यसभा चुनावों को लेकर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा होने के बाद दोनों मानो सुन्न हो गए हैं। हालांकि सतपाल महाराज तो प्रदेश सरकार केबिनेट मंत्री के पद पर भी हैं, मगर विजय बहुगुणा का हाल तो राज्यसभा के नामों की घोषणा के बाद से बुरा हो गया है। विधानसभा चुनाव 2017 में आखरि में भाजपा में जाने वाले यशपाल आर्य अपने और अपने बेटे के लिए विधानसभा का टिकट लेकर मंत्री बन गए। बेटा विधायक बन गया जबकि महाराज सिर्फ अपने और बहुगुणा सिर्फ बेटे को टिकट दिला पाए। विजय बहुगुणा अपने लिए राज्य सभा तो सतपाल महाराज अपनी पत्नी माता अमृता रावत के लिए लैबिंग में लगे हुए थे। मगर जब नामों की घोषणा हुई तो सारे अरमानों पर पानी फिर गया। सतपाल महाराज से अधिक विजय बहुगुणा राज्यसभा जाने की उम्मीद लगाए हुए थे। मगर बाजी मार ले गए अनिल बलूनी। हालांकि अनिल बलूनी ने सोमवार को अपना नामांकन भी भर दिया, जिसमें सतपाल महाराज मौजूद रहे, किन्तु विजय बहुगुणा नदारत रहे। अब देखना दिलचस्प होगा कि हरीश रावत को शिकस्त देने की मंशा से भाजपा में आए विजय बहुगुणा आगे क्या कदम उठाते हैं। या फिर भाजपा विजय बहुगुणा का राज्यपाल का पद देकर शांत करती है।