उत्तराखंड: 60,000 प्रवासियों की वापसी, पलायन से लड़ने का मौक़ा भी और चुनौती भी

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टिहरी
कोरोना से जूझ रहे देश-दुनिया और राज्यों के सामने कई तरह के नये समीकरण पैदा हो रहे हैं। अगर उत्तराखंड की बात करें तो, कोरोना से बचाव के लिये शुरू हुए लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में उत्तराखंड से बाहर रहने वाले प्रवासी वापस अपने शहरों और गाँवों में आ गये हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ पिछले कुछ हफ़्तों में क़रीब 60,000 प्रवासी वापस अपने घरों को आ गये हैं।
राज्य पलायन आयोग ने राज्य सरकार को इस बारे में जानकारी और अपने सुझाव भी दे दिये हैं। आँकड़ों के मुताबिक़ राज्य वापस आये लोगों में से 30% लोग राज्य के ही ज़िलों से दूसरे ज़िलों में आये हैं, वहीं 60-65% देश के अलग अलग हिस्सों से वापस अपने घरों को आये हैं तो, 5% संख्या अन्य देशों से वापस उत्तराखंड आने वाले लोगों की है।
आयोग के मुताबिक़ अब सरकार के सामने मौक़ा है कोरोना और इसके बाद के समय में ऐसे कदम उठाये जिससे इन लोगों को वापस जाने से रोका जा सके। जानकारों का कहना है कि अभी कोरोना लॉकडाउन के हटने और इसके बाद स्थिति सामान्य होने में कितना समय लगेगा यह कहना मुश्किल है। ऐसे में राज्य सरकार के पास मौक़ा है कि इस समय का इस्तेमाल कर ऐसी रणनीति बनाई जाये जिससे घर वापस आये लोगों को उनके कौशल के अनुरूप रोज़गार के साधन मुहैया कराये जा सकें। इसके लिये ब्लॉक लेवल पर टीम बनाकर काम करने की ज़रूरत है।
हालाँकि जानकारों की राय में यह काम आसान नहीं होने वाला है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के वापस आने से राज्य की जीडीपी में इन प्रवासियों द्वारा दिये जा रहे योगदान को भी झटका लगेगा। देश-दुनिया के अन्य हिस्सों में कमाई कर वापस अपने घर वालों को पैसा भेजने को अर्थशास्त्र के जनने वाले, ‘मनी ऑर्डर इकॉनमी’ के तौर पर जानते हैं। लॉकडाउन के कारण इस पर ब्रेक लग गये हैं।
कुछ जिलों में शुरू हुई कवायद
कोरोना के मद्देनजर रुद्रप्रयाग में बाहर से आये युवाओँ, का उनके व्यवसाय व कौशल के आधार पर आंकड़े तैयार किये जा रहे हैं, जिससे उनको रोजगार से जोड़ा जा सके। जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि “रुद्रप्रयाग पर्वतीय जनपद है, इसलिए युवाओं को कृषि व कृषि सम्बद्ध क्षेत्र पर आधारित गतिविधियों का प्रभावी क्रियान्वयन रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है। ऐसे उदाहरण है, जहां किसान बहुआयामी खेती करके मुनाफा कमा रहे है। साथ ही गांव की बंजर भूमि पर भूस्वामियों की सहमति से उद्यान, जड़ी बूटी पर कार्य किया जा सकता है। यहां की भौगोलिक परिवेश दुर्लभ जड़ी बूटियों के लिये अनुकूल है।”
उत्तराकाशी के जिलाधिकारी आशीश चौहान का कहना है कि, “जिले में करीब 5,000 प्रवासी वापस लौटे हैं। इनमे से ज्यादातर स्किलड या नॉन स्किलड हैं। जिला और राज्य प्रशासन इन लोगों के कौशल का इस्तमेलाल कृषि, सिंचाई, सड़क निर्माण और रखरखाव आदि में लेने कि कोशिश कर रहा है।”
उत्तराखंड के लिये पलायन एक बहुत बड़ा और ज्वलंत मुद्दा रहा है। यह न केवल आर्थिक और सामाजिक मुद्दा रहा है बल्कि लंबे समय से राज्य की राजनीति को प्रभावित करता आ रहा है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण होना ही कारण है कि पलायन रोकने के बारे में सैंकड़ों फ़ाइलें भरी गई और कई बयान जारी हुए, लेकिन धरातल पर पलायन अपने पैर लगातार फैलाता जा रहा है।