नदियों पर हुए कब्जे के बाद भी इस बार क्षति कम होगी: गामा

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देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बारिश शुरू होने से लोगों को डर लगने लगा है। इसका कारण नदी तथा नाला क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण एवं जीर्णशीर्ण भवन हैं, जिनके कारण लगभग 40,000 घरों पर कभी खतरा आ सकता है।
मौसम विभाग की चेतावनी के बाद लोगों में दहशत फैल जाती है। इसका प्रमुख कारण रिस्पना और बिंदाल नदियों पर अवैध कब्जे हैं। यहां कब्जा करने वाले अधिकांश रुप से बिजनौर, बिहार, बंगाल, बांग्लादेश तथा अन्य क्षेत्रों से हैं। इन्हें बसाने का काम कांग्रेस नेताओं ने किया था। अब पूरी-पूरी नदी अवैध अतिक्रमण की शिकार है। इसके कारण हर साल वर्षा का पानी नदियों के जलागम क्षेत्र में बने इन घरों में घुस जाता है, जिसके कारण यहां रहने वालों को भारी क्षति होती है।
उच्च न्यायालय नैनीताल ने गत वर्ष इन नदियों के जलागम क्षेत्र में हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था लेकिन वोट की राजनीति के कारण इन्हें तीन साल के लिए बचा लिया गया है। राज्य सरकार की मानें तो इन अवैध कब्जा धारकों के लिए फ्लैट बनाये जाएंगे और उन लोगों को स्थानान्तरित कर दिया जाएगा, लेकिन नदी के जलागम क्षेत्र में बसे इन लोगों को बरसात में कैसे बचाया जाएगा, यह एक यक्ष प्रश्न है।
राजधानी देहरादून पहले रिस्पना और बिंदाल के बीच था लेकिन अब रिस्पना और बिंदाल बीच में हो गए हैं, जिसके कारण यह समस्या और बढ़ गई है। जनसंख्या घनत्व के साथ-साथ लोगों ने न तो नदियों के जलागम क्षेत्र को छोड़ा और न ही नालों खालों को। इसके कारण समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है।
इन बस्तियों को बचाने के संदर्भ में देहरादून के महपौर सुनील उनियाल गामा का मानना है कि यह सच है कि नदियों के आसपास अतिक्रमण हुआ है लेकिन हमने इस वर्ष विशेष प्रयास किया है। रिस्पना बिन्दाल और सभी नालों को साफ किया गया है। उनका कहना है कि इस साल सभी बड़े नालों और नदियों से टनों कूड़ा उठाया गया है ताकि उनका प्राकृतिक प्रवाह बना रहे। ऐसे में निश्चित रूप से क्षति कम होगी।