जागेश्वर मंदिर प्रबंधन :पहले चोरी और फिर सीना जोरी

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    पहले चोरी और फिर सीना जोरी, ये कहावत जागेश्वर मंदिर के प्रबन्धक पर फिट बैठती है, ये महाशय कोर्ट के नियमों की अवेहलना कर तीन साल तक प्रबन्धक पद पर आसीन रहे। मंदिर के पुजारियों की सूची में इनका नाम 35वें नम्बर पर साफ-साफ दर्ज है। इतना ही नहीं इन्होंने पद पर रहकर हमेशा ही अपने चहेतों को जमकर लाभ पहुंचाया है। हमारे पास मौजूद आरटीआई की सूचनाएं इसकी खुली तस्दीक कर रहे हैं।

    दरअसल, कुछ दिन पूर्व हमने सूत्रों पर आधरित एक खबर प्रकाशित की थी। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक ऊपर से आई जांच के आधार पर खुफिया एजेंसियों ने प्रबंधक को अल्मोड़ा तलब कर संयुक्त पूछताछ की। वाकई इनसे कई एंगल से पूछताछ हुई थी। खबर डिजिटल मीडिया में प्रकाशित होते ही प्रबंधक आपा खो बैठे। अब वह अलग-अलग लोगों से फोन करवाकर मीडिया पर प्रेशर बनाने की कोशिश भी कर रहे है यही नहीं अपने पद का दुरूपयोग कर कुछ अधिकारियों को भी गुमराह धमकाने की कोशिश भी की जा रही है।

    अब हम बताते हैं इनकी हकीकत। करीब तीन साल पूर्व हाई कोर्ट ने जब प्रबन्धन समिति का गठन किया था तो इसकी नियमावली भी कोर्ट ने ही बनाई थी। नियमों के अनुसार प्रबन्धक पद पर पुजारी या राजनीति से जुड़े लोग आवेदन नहीं कर सकते हैं। बाकायदा आवेदकों को इस आशय का शपथ पत्र भी देना होता है। वर्तमान प्रबंधक का नाम पुजारियों की सूची में 35वें नम्बर पर साफ दर्ज है। इसके अलावा ये एनएसयूआई से भी जुड़े हुए थे। पुजारियों का आरोप है कि प्रबन्धक भट्ट ने लगातार तीन साल तक अपने पद का खुला दुरुपयोग किया। पब्लिक की आवाज को ऊंचा करना जनाब को पच नहीं रह रहा है।

    पूजा में भी किया बड़ा खेल
    लोग लम्बे समय से प्रबंधक पर चहेतों को लाभ पहुंचने का आरोप लगा रहे हैं। हमारे पास मौजूद आरटीआई में भी इसकी तस्दीक हो रही है। प्रकाश भट्ट की मंदिर में सात दिन बारी आती है। प्रकाश भट्ट ने अपने पिता और भाई को एक समय रसीद के कमीशन के तौर पर करीब एक लाख रुपये का भुगतान किया था। वहीं जिन पुजारियों की साल में छह माह बारी आती है उन्हें माह 19 हजार कमीशन भुगतान किया गया था। मामला सामने आने से हड़कम्प मच गया था। कोर्ट ने पुजारियों में समानता के मकसद से भी कमेटी का गठन किया था। आज भी जागेश्वर के पुजारियों  की सूची में दर्जनों ऐसे पुजारी हैं, जिन्हें  प्रबन्धक की ओर से साल का महज दो सौ या ढाई सौ रुपया ही कमीशन भुगतान किया गया है। स्थानीय लोग तो यहां तक भी कह रहे है कि भारी विरोध के बावजूद प्रबंधक पद का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। इसके पीछे वजह ये बताई जा रही है कि इन्होंने तीन साल के कार्यकाल में एक एम्पायर खड़ा कर लिया था। इनके मंदिर से बाहर हटते ही वो एम्पायर ध्वस्त होना तय है।

    भाई पुजारी तो साहब क्यों नहीं
    अल्मोड़ा।  कुछ समय पूर्व जागेश्वर के पुजारियों ने कमीशन से सम्बंधित आरटीआई मांगी थी। आरटीआई के मुताबिक तब प्रबन्धक ने रसीद के एवज में अपने पिता देवीदत्त को करीब 64 हजार का भुगतान किया था। साथ ही अपने भाई विनोद भट्ट को भी 8827 रुपए का भुगतान किया था। जागेश्वर मंदिर परिसर में रसीद केवल पुजारियों की ही काटी जाती है। सूची में शामिल विनोद भट्ट पुजारी हैं तो उसी सूची में शामिल प्रकाश भट्ट भी साफ तौर पर पुजारी ही होंगी। उसके बाद से प्रबन्धन समिति ने लोगों को आरटीआई के जरिये सूचना देना भी बंद कर दिया था। यह मामला राज्य सूचना आयोग तक भी पहुंच चुका है।

    कानूनविदों से आधारित थी खबर
    पछले दिनों हमने एक खबर डिजिटल मीडिया में चलाई थी। प्रकाश भट्ट से खुफिया एजेंसियों द्वारा  पूछताछ वाले तथ्य हमने सूत्रों के हवाले से लिखे थे। इसके अलावा जानेमाने अधिवक्ताओं से भी इस सम्बंध में बात की थी। अधिवक्ताओं के मुताबिक इस तरह से झूठे शपथ पत्र दाखिल करने और धोखाधड़ी में धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत केस का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में है। इन मामलों में सात साल से अधिक की सजा का प्रावधान भी है। यानी मुकदमा दर्ज होने पर ऐसे अभियुक्त की गिरफ्तारी का प्रावधान भी है। अधिवक्ताओं की राय पर ही वह खबर प्रकाशित की गई थी। इसके बाद भी हम सीना ठोक कर कहते हैं कि हमारे पास धोखाधड़ी  से सम्बंधित पूरे दस्तावेज उपलब्ध हैं।