देहरादून। स्वाइन फ्लू को लेकर स्वास्थ्य विभाग भले सक्रियता के लाख दावे करे, मगर लचर व्यवस्था के चलते मरीजों की जान सांसत में है। एक तरफ मरीज इस बीमारी से लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ व्यवस्था से। स्वाइन फ्लू के प्रारंभिक लक्षण के बाद जिन मरीजों के सैंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं, उनपर कई दिन बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती। ऐसे में लक्षण के अनुसार ही मरीज का उपचार चलता रहता है।
प्रदेश में स्वाइन फ्लू की दस्तक हो चुकी है। दिवंगत थराली विधायक मगनलाल शाह की जांच रिपोर्ट में स्वाइन की पुष्टि हुई है। सवाल यह उठ रहा है कि जांच रिपोर्ट आने में इतनी देर क्यों हुई। दरअसल, स्वाइन फ्लू की जांच के लिए सैंपल राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को भेजे जाते हैं। यहां से रिपोर्ट आने में कई-कई दिन लग जाते हैं। इस दौरान मरीज का इलाज संदेह के आधार पर ही होता है। विगत वर्षों में कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जिनमें रिपोर्ट व्यक्ति की मृत्यु के बाद आई। यह हाल तब है, जब श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में अत्याधुनिक लैब बनकर तैयार है। इस लैब को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र से मंजूरी भी मिली हुई है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग व अस्पताल के बीच अनुबंध न होने के कारण सैंपल दिल्ली भेजे जा रहे हैं। बताया गया कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र में सैंपलों की निश्शुल्क जांच की व्यवस्था है, जबकि श्री महंत इंदिरेश अस्पताल को एक निश्चित राशि विभाग को देनी होगी। सरकारी सुस्ती का आलम देखिए कि गत वर्ष दून मेडिकल कॉलेज में स्वाइन फ्लू की जांच की कवायद शुरू की गई, लेकिन इस पर अब तक कुछ नहीं हुआ है। दून में स्वाइन फ्लू की जांच शुरू करने का सरकार व विभाग ने ढोल खूब पीटा,पर जाने मामला कहां गुम हो गया। सरकार की इस निष्क्रियता ने अपने ही विधायक की जान ले ली है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आम आदमी की सेहत को लेकर लापरवाह सरकार, कम से कम इसके बाद जरूर चेतेगी।
बयान
जांच के लिए नमूने दिल्ली भेजे जाते हैं। जिसकी रिपोर्ट आने में वक्त लग जाता है। हालांकि, इस बीच मरीज का उपचार शुरू कर दिया जाता है। बायोलॉजिकल लैब के लिए काफी संसाधनों की आवश्यकता होती है। जिसका प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
– डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, स्वास्थ्य महानिदेशक