पहाड़ की संस्कृति: आधुनिकता के दौर में दम तोड़ रही ऐपण कला

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(हरिद्वार)  शुब मुहूर्तों और त्योहारों पर उत्तराखंड की ऐपण कला का अपना अलग ही महत्व है। सदियों से चली आ रही ऐपण कला आज भी बरकरार है। हालांकि अब बदलते दौर के साथ ऐपण पारंपरिक तरीके से बनने के बजाए रेडीमेड बनाए जाने लगे हैं। दीपावली के मौके पर बाजार में हाथ से और रेडीमेड बने ऐपण लोगों को खासा आकर्षित कर रहे हैं। इन दिनों सजावट के साथ शुभ कार्य को देखते हुए लोग घरों में ऐपण बना रहें हैं। हालांकि आधुनिकता के दौर में ऐपण कला ने अब दम तोड़ना शुरू कर दिया है। खासकर नई पीढ़ी की ऐपण कला के प्रति रूचि कम होती जा रही है।

उत्तराखंड के कुमाऊं व राजस्थान में दीपावली के मौके पर ऐपण बनाने की परंपरा है। कुमाऊं में होने वाले किसी भी शुभ कार्य में हाथ से बनाए गए ऐपण का महत्व काफी माना जाता है। जबकि राजस्थान में दीपावली, धननतेरस, आदि पर उेपण बनाया जाता है। ऐपण एक ऐसी लोककला है, जो बिना किसी संरक्षण के पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार समृद्ध होती जा रही है। ऐपण कला को कुमाऊंवासियों की धरोहर और पहचान माना जाता है। इस लोककला को जिंदा रखने के लिए महिलाएंओं की अहम भूमिका रही हैं। महिलाओं की बदौलत ही प्रत्येक शुभ कार्यों में ये ऐपण हर घर की दहलीज पर नजर आते हैं। हरिद्वार में भी कुंमाउं क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं। इस कारण इस कला का हरिद्वार में भी खासा प्रचलन है। दिखने में भले ही ये ऐपण आसान नजर आते हैं, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति का खास ख्याल रखा जाता है। कहा जाता है कि शुभ अवसरों पर इन ऐपण को बनाने से घर में खुशहाली और सुख समृद्धि आती है। इन दिनों दीपावली त्योहार की जोर-शोर से तैयारी चल रही है। घर-आंगन को सजाया जा रहा है, साथ ही साफ-सफाई भी की जा रही है। कुमाऊं क्षेत्र में पारंपारिक ऐपण कला भी लोगों की आस्था और आकर्षण को केंद्र बना हुआ है। स्थानीय लोग ऐपण को अपने घरों की चौखटों और मंदिरों में खूब सजा रहे हैं। लोग आंगन और घर में लक्ष्मी के पैर बनाकर नमन कर रहे हैं।

पूर्व में ऐपण चावल के आटे के घोल पर गेरू से इस कला को बनाते थे, किन्तु समय के साथ-साथ अब इस कला में पेंट का प्रचलन बढ़ गया है। कारण की चावल के आटे और गेरू से बनाया जाने वाला ऐपण कुछ समय बाद मिट जाता है जबकि पेंट से बना ऐपण लम्बे समय तक बरकरार रहता है। इस कारण ऐपण में पेंट का इस्तेमाल होने लगा है। ऐपण यानी रंगो से भरी पंक्तियां।

महाराष्ट्र से शुरू हुई रंगोली, बंगाल में अल्पना, दक्षिण भारत में कोलम और उत्तराखंड में ऐपण के नाम से जाना जाता है। आज के बाजारवादी दौर में इन ऐपण का भी बाजारीकरण हो गया है। अब मार्केट में भी तरह-तरह के मनभावन ऐपण सस्ते दामों पर उपलब्ध होने लगे हैं।