पांचवी बार दिल्ली विधानसभा पहुंचे उत्तराखंड मूल के मोहन सिंह बिष्ट

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देहरादून, देश की राजधानी दिल्ली के चुनाव में किसी को हार मिली, तो किसी को जीत। मगर उत्तराखंड हार जीत की इस हकीकत के बीच अपने अंदाज में चमका है। जी हां, दो सीटें ऐसी रही हैं, जहां उत्तराखंड के मूल के उम्मीदवारों ने खूब सुर्खियों बटोर ली हैं। पहले बात, करावलनगर सीट की, जहां से जीतकर मोहन सिंह बिष्ट पांचवीं बार विधायक बने हैं। पटपड़गंज सीट पर भले ही रवि नेगी चुनाव हार गए, लेकिन आप के दिग्गज नेता और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया को उनसे पार पाने में जैसी मशक्कत करनी पड़ी, उसे पूरे देश ने देखा है।
करावलनगर सीट से जीतने वाले उत्तराखंड मूल के मोहन सिंह बिष्ट शुरू से ही बीजेपी से जुडे़ रहे हैं। वह 1998 से इस सीट पर चुनाव लड़ते आ रहे हैं। सिर्फ 2015 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए थे। बाकी सभी चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई। बिष्ट के रूप में इस बार दिल्ली विधानसभा में उत्तराखंड का एक बार फिर से प्रतिनिधित्व होगा। 2015 में दिल्ली विधानसभा में उत्तराखंड मूल का कोई उम्मीदवार जीतकर नहीं पहुंच पाया था।
पटपड़गंज सीट पर इस बार पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया की टक्कर में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही प्रवासी उत्तराखंडी चेहरों को टिकट दिया। भाजपा ने रवि नेगी तो कांग्रेस ने लक्ष्मण सिंह रावत को उम्मीदवार बनाया था। इस सीट पर हुए कांटे के मुकाबले में भले ही मनीष सिसौदिया जीत गए लेकिन उन्हें इसके लिए खूब पसीना बहाना पड़ा। रवि नेगी से वह सिर्फ दो हजार वोटों के अंतर से बामुश्किल जीत पाए। इससे पहले शुरुआती कई राउंड में सिसौदिया इस सीट पर पिछड़ते रहे। एक समय ऐसा लगने लगा था कि उनका जीतना मुश्किल है। सिसौदिया की जीत को मुश्किल बनाने वाले रवि नेगी भी पूरे समय सुर्खियों में बने रहे।
आप-भाजपा में बंटा प्रवासी उत्तराखंडियों का वोट
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में माना जा रहा है कि प्रवासी उत्तराखंडियों का वोट आप और भाजपा के बीच बंटा है। दिल्ली की दस सीटों पर प्रवासी उत्तराखंडियों का प्रभाव माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों की संख्या 24 लाख के करीब है। इस बार भी आप ने प्रवासी उत्तराखंडियों को टिकट नहीं दिया था जबकि भाजपा ने दो टिकट प्रवासी उत्तराखंडियों को दिए थे। इन स्थितियों के बावजूद प्रवासी उत्तराखंडियों ने कई सीटों पर आप को वोट डाला, तो इसकी वजह गढ़वाली, कुमाउंनी और जौनसारी अकादमी की दिल्ली में स्थापना के आप सरकार के फैसले को माना गया।