‘’झुक सकता है आसमां भी,अगर तबियत से पत्थर उछाले कोई’’
यह पंक्तियां देहरादून “मशरुम गर्ल” के नाम से मशहूर दिव्या रावत पर बिल्कुल सटीक बैठती है।दिव्या को आने वाले 8 मार्च यानि महिला दिवस पर भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा। दिव्या रावत उत्तराखंड की सभी लड़कियों के लिए मिसाल बनकर सामने आई हैं। दिव्या उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के कोटकंडारा गांव की रहने वाली हैं।दिव्या ने एमिटी यूनिर्वसिटी से बैचलर इन सोशल वर्क की डिग्री ली,उसके बाद इग्नू से मार्स्टस इन सोशल वर्क के बाद लगभग दो साल शक्ति वाहिनी एनजीओ में ह्यूमन राइट और ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर काम किया है।
मशरुम बाकी सब्जियों के मुकाबले स्वास्थ्यवर्धक,स्वादिष्ट और मंहगा है।मशरुम की मंहगाई और डिमांड को देखते हुए दिव्या ने मशरुम को चुना।अपने पहले मशरुम प्लांट की शुरुआत दिव्या ने मोथरावाला देहरादून से की।इसके बाद दिव्या के इस मिशन में लोग इनसे जुड़ते गए और पहले प्लांट से शुरू कर अब तक इन्होंने उत्तराखंड में लगभग 53 सेंटर शुरु कर दिए हैं।यह बात सुनने में तो आसान लगती है लेकिन इसके लिए दिव्या ने दिन रात एक की है और आज दिव्या के साथ 2000 से ज्यादा लोग अपनी इच्छा से जुड़े हुए हैं।दिव्या की सोच सिर्फ इतनी थी कि पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोका जा सके। आज जितने भी लोग दिव्या के साथ काम कर रहे वह आत्मनिर्भर और अपनों के साथ हैं। जहां तक सड़कें नहीं पहुंची,लेकिन जहां इंटरनेट की पहुंच है वहां से भी लोग वाट्सएप और इंटरनेट के माध्यम से दिव्या से जुड़े हैं और काम कर रहे हैं।गढ़वाल के ऊंचाई वाले गांव, जौनसार और दूर दराज़ के गांवों में लोग दिव्या से जुड़कर काम कर रहे हैं। दिव्या यह मानती हैं कि अभी उन्होंने केवल 2 प्रतिशत काम किया है,बाकी 98 प्रतिशत काम करना अभी बाकी है। दिव्या कहती है कि “मैं मशरुम की खेती को पूरे देश में फैलाना चाहती हूं, 2017 के आखिरी तक कम से कम 500 सेंटर का टारगेट लेकर चल रहीं हूं और मुझे पूरा विश्वास हैं कि लोगों का साथ और मेरी मेहनत रंग लाएगी।”
काम के दौरान बेरोजगारी और थोड़े से पैसों की वजह से बहुत से लोगों को घर से दूर रहकर काम करते देख दिव्या ने मन में ठान ली की वह कुछ ऐसा करेंगी जिससे लोगों को अपने घर से दूर नहीं जाना पड़ेगा। इस सोच के साथ दिव्या ने अपनी जिंदगी की नई पारी मशरुम की खेती से शुरु की। दिव्या का मानना है कि वो कुछ हटकर नहीं कर रहीं, उन्होंने लोगों की सेवा और सहायता करने के लिए ही सोशल वर्क डिर्पाटमेंट में पढ़ाई की थी और इसी इंटलेक्चुअल फिल्ड में ही वह काम भी कर रहीं हैं। दिव्या आज “मशरुम गर्ल” के नाम से मशहूर हैं लेकिन इस काम की शुरुआत में उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह इस काम के जरिए लोगों में पहचानी जायेंगी। दिव्या कहती हैं कि “जब मैनें इस काम के बारे में सोचा था तब मुझे सिर्फ यह पता था कि मैं काम करुंगी चाहें मुझे सफलता मिलें या नहीं।” दिव्या कहती हैं कि “यह नेम,फेम जो भी है इसके बारे में मैंने सोचा नहीं बस यही था कि अपने काम पर फोकस करुंगी और और किसी भी कीमत पर अपने पैर वापस नहीं खीचूंगी।”
दिव्या के निरंतर प्रयास और उनकी मेहनत की वजह से हजारों लोगो को रोजगार मिला और सरकार की तरफ से उनके इस प्रयास की सराहना भी की गई है।