पहाड़ों की रानी मसूरी में 28 फरवरी को मनाई जाएगी होली।हैरान हो गए ना,जी हां, हम आपको बताते हैं क्यों पहली बार मसूरी में होली जल्दी मनाई जा रही है।दरअसल मसूरी के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब होली से दो दिन पहले यानि की 28 फरवरी को, गढ़वाली कलाकार और मसूरी के लोग मसूरी की गलियों में होली के गाने पर झूमते नज़र आऐंगे।
यह मस्तानों की टोली 28 तारीख को शाम 3 बजे मसूरी के शहीद स्थल पर एक घंटे का सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति देगा,इस परफॉर्मेंस के बाद शहीद स्थल से शहर का चक्कर लगा कर लोगों को बधाईयां देते हुए यह लोग लेैंडोर मसूरी पहुंच कर बैठकी होली की प्रस्तुति देंगे।
न्यूजपोस्ट से बातचीत में डॉ.पुरोहित ने बताया कि, “सेंटर ऑफ फोल्क परर्फॉमिंग आर्टस् एंड कल्चर की तरफ से यह पहल की गई थी,पहाड़ों में होली की यही परंपरा है और बहुत पहले से चली आ रही है।लेकिन समय के साथ-साथ यह केवल श्रीनगर के 2-3 घर में सिमट कर रह गई थी।हमारे विभाग ने पहल की और उन गांवों को वापस संजोया।हम लोगों ने नौजवनों को ट्रेनिंग दी और विलुप्त हो रही इस परंपरा को एक बार फिर से शुरु किया है।जबरदस्ती बाज़ार में होली कराई,लोगों के घर में गए,और अब ये होली सार्वजनिक स्थानों में आयोजित की जाएगी और लोग इससे जुड़ भी रहे हैं।”
गौरतलब है कि जो साल 2008 में एक प्रयोग के रुप में शुरु किया गया था वह परंपरा अब आगे बढ़ चुकी है और एक शहर से दूसरे शहर की तरफ बढ़ रही है। डॉ.पुरोहित ने बताया कि, “श्रीनगर और देवप्रयाग में जो होली गायन की परंपरा थी उसे कुछ लोग मिलकर संजो रहे है। कुमाऊं बॉर्डर के पास रहने वाले गढ़वाली लोगों के बीच इस तरह की होली काफी प्रचलित थी।साथ-साथ टिहरी दरबार में भी यह होली गाई जाती थी जिन्हें यहां के बादी गाते थे।”
दुनिया में मशहूर कुमाऊंनी होली के बारे में और बात करते हुए डॉ.पुरोहित कहते है कि, “होली पौष के पहले रविवार से शुरु होती है जिसे निर्वाना की होली कहते हैं जिसमे भगवान शंकर की होली गाई जाती है।बसंत पंचमी में श्रींगार की होली की शुरुआत होती है, इस गीत के बोल कुछ ऐसे हैं:”नवल बसंत,सखी ऋतुराज कहां रहैं,य़ौ नवल बसंत,” यह कृष्ण और राधा के श्रीनगर के गीत गाए जाते होते है।”
होली अपने तरह का ऐसा पर्व है जिसमें स्वांग होता है, व्यंग होता है, सबसे बड़ी बात होली की यह भी है कि इसमें स्त्री स्वांग करती है, पुरुष बनती है और उनकी कमियों पर व्यंग करती है। प्रदेशभर के गांवो, शहरों में मंच बनाए जाते है, मंडलों में प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है, उत्तराखंड राज्य में चंपावत और नैनीताल की होली सबसे ज्यादा मशहूर है।
बहरहाल मसूरी के लोगों के लिए यह पहली बार होगा जब उत्तराखंड की पारंपरिक होली की एक छटा उन्हें देखने को मिलेगी, जब इस दल के लोग गाना गाते, बजाते और नाचते हुए मसूरी की गलियों को रंगारंग करेंगे और शहर में कोई ऐसा नहीं होगा जो इस होली को नहीं देखेगा।