नगर निगम रुद्रपुर घोटालों के लिए लगातार चर्चाओं में रहा है, जिसको लेकर कई बार कोर्ट की फटकार भी निगम को पडी है, बावजूद इसके निगम अपनी कार्यशैली बदलने का नाम नहीं ले रही है वहीं निगम का एसा सच सामने आया है जिससे निगम की कार्यशैली सवालों में फिर घिर गयी है। कहने को तो राजनीति में झूठ सच बोल कर जनता को गुमराह करने की परंपरा है, लेकिन यहां निगम ने ऐसा झूठ बोला की करोडों की योजना का लाभ जो गरीब जनता को मिलना था वो नहीं मिल पाया, मामला रम्पुरा क्षेत्र का है जहां गरीबों के मकानों के निर्माण के लिए स्वीकृत हुई 16.5 करोड़ की योजना में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
इस आवासीय योजना के लिए 6.45 करोड़ की धनराशि अवमुक्त भी हो गई और दो साल तक नगर निगम में पड़ी रही, लेकिन गरीबों की आवासीय योजना शुरू नहीं हो सकी। अंतत: धनराशि को वापस करना पड़ा। इस मामले में मेयर सोनी कोली व पूर्व पालिकाध्यक्ष मीना शर्मा एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप प्रत्यारोप की सियासत कर रहे हैं।
रम्पुरा के 378 गरीबों के मकान के लिए आई 6.45 करोड़ की धनराशि 13 फरवरी 2013 को प्राप्त हुई और 11 अगस्त 2015 को यह धनराशि नगर निगम से वापस भेजी गई। दो साल तक मेयर सोनी कोली के कार्यकाल में नगर निगम में पड़ी रही। उस पर 28.50 लाख रुपये बैंक ब्याज भी मिला, लेकिन यह धनराशि समय पर कार्य शुरू न होने के कारण नगर निगम को वापस करनी पड़ी। यानि दो साल तक पूर्व पालिकाध्यक्ष मीना शर्मा पर धनराशि पर कुंडली मारे बैठे रहने का मेयर का आरोप झूठा साबित हुआ। गौरतलब है कि मेयर सोनी कोली ने यह आरोप लगाया था कि यह योजना 2011 में स्वीकृत हुई थी, लेकिन तत्कालीन पालिकाध्यक्ष मीना शर्मा दो साल तक धनराशि पर कुंडली मारे बैठी रहीं। जब वह मेयर बनीं तो उन्होंने इस योजना में टेंडर निकाले, लेकिन कोई ठेकेदार टेंडर डालने को राजी नहीं हुआ। वजह यह थी कि दो वर्षों में लागत मूल्य बढ़ गया था। उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर भी यह तोहमत मढ़ दी कि सरकार ने उन्हें मकान बनाने की अनुमति नहीं दी। इस बात में कितनी सच्चाई है इसका भी खुलासा जरूर होगा। इस बावत पूर्व पालिकाध्यक्ष का कहना था कि योजना जरूर 2011 में स्वीकृत हुई थी, लेकिन धनराशि उन्हें 2013 में मिली। उसके बाद शासन ने पालिका को नगर निगम का दर्जा दे दिया था और उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही हटना पड़ा था।
सूचना के अधिकार से मिली प्रति में यह स्पष्ट हो गया है कि जवाहर लाल नेहरू अरबन मिशन योजना के तहत 13 फरवरी 2013 को 378 आवासों के लिए छह करोड़ पैतालीस लाख बत्तीस हजार रुपये की धनराशि पालिका के खाते में आई थी। नगर निगम के गठन के बाद रम्पुरा की सोनी कोली मेयर बनीं। अभिलेख गवाह हैं कि 11 अगस्त 2015 को यानि पूरे ढाई साल बाद 67387781 रुपये का चैक शासन को लौटाया गया। इस अवधि में 28.50 लाख रुपये तो अवमुक्त हुए 64532000 रुपयों पर ब्याज भी मिल गया। यदि नगर चाहती तो इस योजना के तहत गरीबों के मकानों का निर्माण कर सकती थी।
अब सवाल यह उठता है कि अपनी नाकामी छिपाने को मेयर ने झूठ क्यों बोला? यदि लागत मूल्य बढ़ा था तो ब्याज की धनराशि भी तो बढ़ी थी। बहरहाल, वजह कुछ भी हो, लेकिन गरीबों के पक्के मकान में रहने का सपना तो ध्वस्त हो गया।